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तृतीयो विलासः
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अवलोकिता) के (अथवा शिष्य-भूरिवसु और देवरात के) कष्टों से फलीभूत हुआ। तुम्हारे मित्र (मकरन्द) का प्रिया (मदयन्तिका) के साथ कौशलपूर्ण वैवाहिक सम्बन्ध भी विहित हो गया। राजा और नन्दन भी प्रीतियुक्त हो गये हैं, अन्य दूसरा जो प्रियतर हो तो उसे भी कहो।।504।।
यहाँ काव्य (नाटक) के उपसंहार वाले श्लोक के द्वारा तृतीय पुरुषार्थ काम की फलता का कथन होने से यह शुद्ध कार्य है।
मिश्रं यथा बालरामायणे (१०/१०४)
रुग्णं चाजवगवं न चापि कुपितो भर्गः सुरग्रामणीः सेतुश्च ग्रथितोः प्रसन्नमधुरो दृष्टश्च वारांनिधिः । पौलस्त्यश्चरमस्थितश्च भगवान् प्रीतः श्रुतीनां कविः
प्राप्तं यानमिदं च याचितवते दत्तं कुबेराय च ।।505 ।। इत्यनेनोपसंहारश्लोकेन मिश्रस्य त्रिवर्गफलस्य कथनाद मिश्रमिदम् । मिश्र कार्य जैसे बलरामायण (१०/१०४) में
आजगव धनुष को भङ्ग किया और देवश्रेष्ठ शिव भी क्रुद्ध नहीं हुए। सेतु भी बाँध दिया तथा समुद्र प्रसन्न और सौम्य ही दिखायी पड़ा। रावण का वध भी किया तथा वेद प्रणेता भगवान् ब्रह्मा प्रसन्न ही रहे और इस विमान को प्राप्त किया तथा याचना करने वाले (कुबेर) को दान भी कर दिया।।505 ।।
इस उपसंहार श्लोक के द्वारा त्रिवर्ण (धर्म, अर्थ और काम) मिश्रित फल का कथन होने से यह मिश्रकार्य है।
__ प्रधानमङ्गमिति च तद्वस्तु द्विविधं पुनः ।।१८।। स्वरूप की दृष्टि से कथावस्तु का विभाजन
वह (बीज,बिन्दु, पताका, प्रकरी, कार्य रूप) कथावस्तु पुनः दो प्रकार की होती है- (१) प्रधान (अधिकारिक) कथावस्तु और (२) अङ्ग (प्रासङ्गिक) कथावस्तु।।१८उ.।।
(तत्र प्रधानेतिवृत्तम्)
प्रधान-नेतृचरितं प्रधानफलबन्धि च ।
काव्ये चापि प्रधानं स्यात् तथा रामादिचेष्टिम् ।।१९।।
(१) प्रधान कथावस्तु- मुख्य नायक का चरित जो काव्य में फलपर्यन्त अभिव्याप्त रहता है वह प्रधान (अधिकारिक) कथावस्तु कहलाता है। जैसे- राम इत्यादि की कथावस्तु॥१९॥
(अथाङ्गेतिवृत्तम् )
नायकार्थकृदङ्गं स्यानायकेतरचेष्ठितम् ।