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द्वितीयो विलासः
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अत्र जिनस्य रागात्यन्ताभावेन रसाभासत्वम् । यहाँ जिन के राग का अत्यन्ताभाव होने के कारण रसाभासता है। अनेकत्र योषितो रागाभासत्वं यथा (रघुवंशे ७.५३)
परस्परेण क्षतयोः प्रहोरखकान्तवाय्वोः समकालमेव ।
अमर्त्यभावेऽपि कयोश्चिदासीदेकाप्सरः प्रार्थनयोर्विवादः ।।496।।
अत्र कस्याचिद् दिव्यवनितायाः वीरद्वये रणानिवृत्तिमरणप्राप्तदेवताभावेऽनुरागस्य निरुपमानशूरगुणोपादेयतादेरवैषम्येण प्रतिभासनादाभासत्वम् । ..
अनेक पुरुषों में स्त्री की रागाभासता जैसे (रघुवंश ६/५३में)
एक दूसरे के प्रहार से एक समय में ही मरे हुए दो योद्धा देवता होकर जब स्वर्ग में गये, तब वहाँ एक ही अप्सरा पर दोनों रीझ गये और वहाँ भी फिर आपस में झगड़ने लगे।।496।।
यहाँ किसी दिव्यस्त्री का दो वीरों के प्रति रण में प्राप्त मृत्यु के कारण प्राप्त देवत्व के अभाव में अनुराग का निरुपमान वीरता के गुणों की उपादेयता इत्यादि की विषमता से प्रतिभासित होने के कारण यहाँ आभासत्व है।
अनेकत्र पुंसो रागाद् यथा
रम्यं गायति मेनका कृतरुचिर्वीणास्वनैरुवंशी चित्रं वक्ति तिलोत्तमा परिचयं नानाङ्गहारक्रमे । आसां रूपमिदं तदुत्तममिति प्रेमानवस्था द्विषा
भेजे श्रीयनपोतशिङ्गनृपते! त्वत्खड्गभित्रात्मना ।।497 ।।
अत्र नायकखड्गपारागलितात्मनः कस्यचित् स्वर्गतनायकप्रतिवीरस्य मेनकादिस्वलोकगणिकास्वरवैषम्येण रागादाभासत्वम् ।
अनेकत्र (अनेक स्त्री में) पुरुष के राग से रसाभास जैसे
मेनका मनोहर गा रही है, उवर्शी वीणा की ध्वनि के साथ दत्तरुचि वाली हो गयी है तथा अनेक हाव-भाव के क्रम में तिलोत्तमा (अपने) विचित्र परिचय को बता रही है, इन सभी का यह लावण्य अनुपम है। हे श्रीयनपोत शिङ्गभूपाल! आप के तलवार से अलग हुई आत्मा वाले (अर्थात् मृत्यु को प्राप्त) शत्रुओं ने प्रेम की अवस्था को प्राप्त किया।। 497।।
___ यहाँ नायक के खड्ग की धारा से वञ्चित आत्मा वाले किसी स्वर्ग को प्राप्त प्रतिनायक का मेनका इत्यादि स्वर्गलोक की गणिकाओं के स्वर-वैषम्य के कारण राग का आभासत्व है।
नन्वेवं दक्षिणादीनामपि रागस्याभासत्वमिति चेद् न। दक्षिणस्य नायकस्य नायिकास्वनेकासु वृत्तिमात्रेणैव साधारण्यं, न रागेणः। तदेकस्यामेव रागस्य प्रौढत्वमितरासु रसा.२२