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तृतीयो विलासः तदीदशरसाधारं नाट्यं रूपकमित्यपि । नटस्यातिप्रवीणस्य कर्मत्वान्नाट्यमुच्यते ।।१।। यथा मुखादौ पद्मादेरारोपे रूपकप्रथा ।
तथैव नायकारोपो नटे रूपकमुच्यते ।।२।।
नाट्य शब्द की व्युत्पत्ति- ऐसे रसों का आधार नाट्य है जिसे रूपक भी कहा जाता है। अतिकुशल नट का कार्य होने के कारण वह नाट्य कहा जाता है।।१।।
____ रूपक शब्द की निष्पति- जिस प्रकार मुख इत्यादि पर कमल इत्यादि का आरोप होने पर वह रूपक कहलाता है उसी प्रकार नट पर नायक का आरोप ही रूपक कहा जाता है।।२।।
विमर्श- जिस प्रकार मुख में कमल का आरोप किये जाने के कारण मुखकमल में रूपक (अलंकार) कहलाता है उसी प्रकार नट में राम आदि की अवस्था (रूप) का आरोप होने के कारण नाट्य को रूपक कहते हैं।
__ तत्र नाट्यं दशविधं वाक्यार्थमभिमनयात्मकम् । तथा च भारतीये नाट्यशास्त्र (१८.२-३)
नाटकं सप्रकरणमको व्यायोग एव च । भाण: समवकारश्च वीथी प्रहसनं डिमः ।।
ईहामृगश्च विज्ञेयं दशधा नाट्यमित्यपि ॥
नाट्य के प्रकार (भेद)- वाक्यार्थ का अभिनयात्मक रूप वाला नाट्य दश प्रकार का होता है, जैसा भरत ने नाट्यशास्त्र में कहा है-(१) नाटक, (२) प्रकरण, (३) अङ्क, (४) व्यायोग, (५) भाण, (६) समवकार, (७) वीथी, (८) प्रहसन, (९) डिम, (१०) ईहामृगये दश प्रकार के नाट्य होते हैं। रसेतिवृत्तनेतारस्तत्तद्रूपकभेदकाः
।।३।। लक्षिता रसनेतारः इतिवृत्तं तु कथ्यते । . इतिवृत्तकथावस्तुशब्दाः
पर्यायवाचिनः ।।४।। इतिवृत्तं प्रबन्धस्य शरीरं -त्रिविधं हि तत् । ख्यातं कल्प्यं च सङ्कीर्ण. ख्यातं रामकथादिकम् ।।५।।