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द्वितीयो विलासः
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युवतियों) द्वारा प्रारम्भ किया (वृद्धि को प्राप्त कराया) गया।।470।।
अथ सम्पन्नः
भयव्यलीकस्मरणाद्यभावात् प्राप्तवैभवः ।।२२४।।
प्रोषितागतयोयूनोभोंगः सम्पन्न ईरितः ।
(३) सम्पन्न सम्भोग शृङ्गार- भय, व्यर्थ स्मरण इत्यादि के अभाव (भयादि से रहितता) के कारण समृद्धि को प्राप्त प्रोषित (विदेश से लौटे हुए) युवकों (नायक और नायिका) का भोग सम्पन्न सम्भोग कहलाता है।।२२४उ.-२२५पू.।।
यथा (सरस्वतीकण्ठाभरणेऽप्युद्धृतम्)
दन्तक्खअं कवोले कअग्गहुव्वेल्लिओ अ धम्मिल्लो । परिचुम्बिआ अ दिट्ठी पिआअमं सूचइ वइए ।।471 ।। (दन्तक्षतः कपोले कचग्रहोद्वेलितश्च धम्मिल्लः ।
परिचुम्बिता च दृष्टिः प्रियागमं सूचयति वध्वाः।।)
अत्राप्रथमसम्भोगत्वाद् भयाभावः दन्तक्षतादिष्वङ्गार्पणानुकूल्येन व्यलीकस्मराद्यभावः, ताभ्यामुपरूढवैभवः सम्पद्यते।
जैसे
गालों पर दाँत से कटे होने, बालों को पकड़ने से बिखरी हुई जूड़ा और इधर-उधर चञ्चल आँखें वधू के प्रियतम के (विदेश से) आने को सूचित करती हैं।।471।।
यहाँ प्रथम बार का सम्भोग न होने (अर्थात् पहले भी सम्भोग हुए होने) के कारण भय का अभाव है। दन्तक्षत इत्यादि में अङ्गों को समर्पित करने की अनुकूलता के कारण व्यर्थ के स्मरण इत्यादि का अभाव है। उन (अभावों) के कारण समृद्धि को प्राप्त सम्भोग हो रहा है।
अथ समृद्धिमान्
पुनरुज्जीवतां भोगसमृद्धिः कियती भवेत् ।। २२५।।
शिवाभ्यामेव विज्ञेयमित्ययं समृद्धिमान् ।
(४) समृद्धिमान् सम्भोगशृङ्गार- पुनर्जीवित होने पर मिले हुए नायक-नायिका की) कितनी सम्भोग समृद्धि होती है यह शिव और पार्वती ही जानते हैं, ऐसा अपूर्व सम्भोग समृद्धिमान् सम्भोग कहलाता है।।२२५उ.-२२६पू.।।
यथा (अभिनन्दस्य कादम्बरीकथासारे ८.८०)
चन्द्रापीडं सा च जग्राह कण्ठे कण्ठस्थानं जीवितं च प्रपेदे ।