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रसार्णवसुधाकरः
रोमाञ्च गद्गदा वाणी - भावमन्थरवीक्षणम् ।। १८७ ।। तत्सङ्गचिन्तनं संख्या गण्डस्वेदादयोऽपि च ।
(४) गुणकीर्तन - सौन्दर्यादि गुणों की प्रशंसा गुणकीर्तन कहलाता है। इसमें रोमाञ्च, गद्गद् वाणी, भाव के कारण जड़ दृष्टि, उसके साथ के विषय में चिन्तन, गणना (गिनना), गालों पर पसीना आना इत्यादि अनुभाव होते हैं ।। १८७ - १८८पू.।।
यथा
किं कामेन किमिन्दुना सुरभिणा किं वा जयन्तेन किं मद्भाग्यादनपोतसिंहनृपते रूपं मया वीक्षितम् । अन्यास्तत्परिचर्ययेव सुदृशो हन्तेति रोमाञ्चिता स्विद्यद्गण्डतलं सगद्गदपदं सांख्याति सख्याः पुरः ।।439 ।।
जैसे
नायिका अपनी सखी के सामने (अनपोत सिंह राजा के गुणों का वर्णन करते हुए कह रही है - ) मुझे कामदेव से क्या ? चन्द्रमा से क्या प्रयोजन अथवा इस सुगन्ध से क्या अथवा (इन्द्रपुत्र) जयन्त से क्या प्रयोजन ? सौभाग्य से मेरे द्वारा अनपोत सिंह राजा का सौन्दर्य देख लिया गया अन्य (नायिकाएँ) तो उस सुन्दर दृष्टिवाले (राजा) की सेवा करने से रोमाञ्चित होती है किन्तु खेद है कि (उन्हें देख कर ही ) मेरे गालों पर पसीना हो गया और पैर लड़खडड़ाने लगे । । 439 ।।
अथोद्वेगः
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मनसः कम्प उद्वेगः कथितस्तत्र विक्रियाः ।। १८८ ।। चिन्ता सन्तापनिःश्वासौ द्वेषः शय्यासनादिषु । स्तम्भचिन्ताश्रुवैवर्ण्यदीनत्वादय ईरिताः ।। १८९।।
(५) उद्वेग- मन का काँप जाना उद्वेग कहा जाता है। उसमें चिन्ता, सन्ताप, निःश्वास, शय्या और आसन इत्यादि के प्रति द्वेष, जड़ता, चिन्ता के कारण निष्प्रभता, दीनता इत्यादि विक्रियाएँ कही गयी है ।। १८८उ. - १८९॥
यथा
सेवाया अनपोतसिंहनृपतेर्यातेषु राजस्वथो
तत्स्त्रीभिश्चिरयत्सु तेषु विलसच्चेतः समुद्भ्रान्तिभिः । निःश्वासग्लपिताधरं
परिपतत्संरुद्धबाष्पोदयं
कामं स्निग्धसखीजने विरचिता दीना दृशोर्वृत्तयः । 1440 ।।
जैसे
अनपोत सिंह राजा की सेवा के पश्चात् जाने वाले (अन्य ) उन ( सेवा करने वाले)