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भी शोक की प्राप्ति हो जाएगी।
प्रवास:,
रसार्णवसुधाकरः
नन्वेयं प्रवासकरुणयोः को भेदः इति चेद्, उच्यते । शरीरेण देशान्तरगमने प्राणैर्देशान्तरगमने करुण इति ।
शङ्का- यदि ऐसी बात है तो फिर प्रवास विप्रलम्भ और करुण में क्या भेद है ? समाधान- इस विषय में कहते हैं- शरीर के द्वारा देशान्तर जानें पर प्रवास विप्रलम्भ होता है और प्राण के देशान्तर जाने पर करुण होता है ?
अत्र केचिद् अयोगशब्दस्य पूर्वानुरागवाचकत्वं विप्रयोगशब्दस्य मानादिवाचकत्वं चाभिप्रेत्यायोगो विप्रयोगश्चेति सम्भोगादन्यस्य शृङ्गारस्य विभागमाहुः । विप्रलम्भपदस्य प्रयोगे च कारणं ब्रुवते कृत्वा सङ्केतमप्राप्तेऽध्यक्रमे नायकेनान्यकान्तानुसरणे च विप्रलम्भशब्दस्य मुख्यप्रयोगः, वञ्जनार्थत्वात् । तत्सामान्याभिधायित्वे तु विप्रलम्भशब्दस्योपचरितत्वापत्तेरिति, तदयुक्तम् । चतुर्विधे विप्रलम्भे वञ्चनारूपस्यार्थस्य मुख्यतः एव सिद्धेः । तथा च श्रीभोजः (सरस्वतीकण्ठाभरणे ५/६३,६५,६६)विप्रलम्भस्य यदि वा वञ्चनामात्रवाचिनः । विना समासैश्चतुराश्चतुरोऽर्थान् प्रयुञ्जते ।। पूर्वानुरागो विविधो वञ्चनव्रीडितादिभिः । माने विरुद्धं तत्प्राहुः पुनरीर्ष्यायितादिभिः ।। व्याविद्धं दीर्घकालत्वात् प्रवासे तत्प्रतीयते । विनिषिद्धं तु करुणे करुणत्वेन गीयते ।।
इस सन्दर्भ में (धनञ्जय इत्यादि) कुछ लोग अयोग शब्द का पूर्वानुराग वाचकता और विप्रयोग शब्द का मान इत्यादि वाचकत्व मानकर सम्भोग शृङ्गार से अन्य (वियोग ) शृङ्गार के अयोग और विप्रयोग ये दो भेद करते हैं। विप्रलम्भ शब्द के प्रयोग में वे ये कारण देते हैं (१) सङ्केत देकर नायक का न आना (२) नायक द्वारा आने की अवधि का अतिक्रमण करना और (३) नायक का अन्य नायिका में आसक्त हो जाना। किन्तु इन तीनों में वञ्चना के कारण विप्रलम्भ शब्द का मुख्य (अर्थ में) प्रयोग होता है । (अन्यत्र सर्वत्र तो लक्षणा करनी पड़ती है)। अत एव सामान्य रूप से अभिधान होने में विप्रलम्भ शब्द का उपचारिता (लक्षणा अर्थ के प्रयोग) के कारण आपत्ति होती है। (अतः अयोग और वियोग ) का प्रयोग करना चाहिए।) किन्तु (धनञ्जय का यह मत) उपयुक्त नहीं है क्योंकि (पूर्वानुराग, मान, प्रवास और करुण-इन चारों प्रकार के विप्रलम्भ (शृङ्गार) में वञ्चना रूप अर्थ के मुख्य रूप से सिद्ध होने के कारण विप्रलम्भ शब्द का प्रयोग सर्वथा युक्तिसङ्गत है ।
जैसा कि श्रीभोज ने (सरस्वतीकण्ठाभरण में) कहा है
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यदि वञ्चना मात्र के वाचक विप्रलम्भ के चारों भेद बिना समास के (वञ्चना के) चार