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रसार्णवसुधाकरः
मन्तु का अर्थ है- अपराध।। उस अपराध से भय जैसे (रघुवंश १६.८० में)
राजा कुश ने आभूषण रूप प्रत्युपहार को लेकर उपस्थित उस नाग को देख कर धनुष पर से गरुड़ास्त्र उतार लिया, क्योंकि सज्जन लोग उन पर क्रोध नहीं करते जो नम्र होकर उनके आगे आ जाते हैं।।420 ।।
घोरदर्शनाद् यथा---
पराजितचोलभयेन पाण्ड्यः पलायमानो दिशि दक्षिणस्याम् । समाकुलो वारिनिधिं विगाह्य
सेतुच्छिदं दाशरथिं निनिन्द ।।421 ।। अत्र युद्धसंरम्भभीमस्य चोलस्य दर्शनात् पाण्ड्यस्य भयं पलायनादिभिर्व्यज्यते। भयङ्कर (दृश्य) देखने से भय जैसे
(भयङ्कर युद्ध में) पराजित हुए (अत एव) चोल राजा के भय से दक्षिण दिशा में भागते हुए व्याकुल (घबड़ाए हुए) पाण्ड्य राजा समुद्र में घुसकर (बनाये गये) सेतु को (लङ्काविजयोपरान्त वापस लौटते समय) तोड़ देने वाले राम की निन्दा करने लगे।।420।।
यहाँ युद्ध में भयङ्कर चोल (राजा) को देखने के कारण पाण्ड्य (राजा) का भय पलायन इत्यादि से व्यञ्जित होता है।
घोरश्रवणाद् यथा
श्रुत्वा निस्साणराणं रणभुवि भवतो माधवक्ष्मामाधवेन्द्र! प्राप्य प्रत्यर्थिवीराःकुलशिखरिगुहां गूढगाढान्धकाराम् । लीना लूनप्रताप निजकटकमणिश्रेणिकान्तिप्रकर्ष
स्रष्टारं नष्टधैर्याः कमलभुवमहो हन्त निन्दन्ति मन्दम् ।।422।। भयङ्कर श्रवण से भय जैसे
हे महाराज माधवेन्द्र! युद्धस्थल की ओर आप के निकलने को सुनकर और अभीष्ट अवसर को पाकर गहन गम्भीर अन्धकार वाली कुलपर्वतों की गुफाओं में छिपे हुए नष्ट प्रताप वाले धैर्यरहित (शत्रु) करधनी की मणियों के समूह की कान्ति से प्रकृष्ट विधाता कमलभूत (कमल से उत्पन्न, ब्रह्मा) की धीरे-धीरे निन्दा करते हैं यह आश्चर्य की बात है।।422 ।।
अतिलौकिकात्कारणादुत्तमस्य यथा (शिशुपालवधे १/५३)
अशक्नुवन् सोढुमधीरलोचनः सहस्ररश्मेरिव यस्य दर्शनम् ।