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रसार्णवसुधाकरः
धृति का स्थायिभावत्व नहीं है । धृति के स्थायिभावत्व के निराकरण के कथन से ही यह विषय (प्रसङ्ग) नष्ट (समाप्त) हो जाता है फिर शम का स्थायिभावत्व कहाँ विलीन हो गया- यह मैं नहीं जानता ।
[ २४० ]
मतेः स्थायित्वं तेनैवोदाहृतम् । तथाहि (महावीरचरिते १.३१) - साधारण्यान्निरातङ्कः कन्यामन्योऽपि याचते
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किं पुनर्जगतां जेता प्रपौत्रः परमेष्ठिनः
।।429 इति।।
मति के स्थायिभावत्व का उदाहरण उन्होंने (भोज ने) दिया हैं जैसे कि ( महावीरचरित १.३१ मे ) -
साधारणता के कारण कन्या की मँगनी अन्य कोई भी कर सकता है, फिर ब्रह्मा के प्रपौत्र जगत् विजयी (रावण) की क्या बात है ? ।। 429 ।।
व्याकृतं च- रामस्योदात्तप्रकृतेर्निसर्गत एव तत्त्वाभिनिवेशिनी मतिर्नान्यविषये प्रवर्तते, न च प्रवृत्तोपरमति । सा च सीतेयं मम स्वीकारयोग्येत्येवंरूपेण प्रवृत्ता रावणप्रार्थनालक्ष्मणप्रोत्साहनाभ्यामुद्दीप्यमाना समुचीयमानचिन्तावितर्कव्रीडावहित्थस्मृत्यादिभिः कालो - चितोत्तरानुमीयमानैर्विवेकचातुर्यधैयौदार्यादिभिः संसृज्यमानोदात्तरसरूपेण निष्पद्यत इति ।
और (भोज ने) व्याख्या किया है- उदात्त प्रकृति वाले राम की स्वभावत: ही तत्त्व (यथार्थ) का अन्वेषण करने वाली मति अन्य विषय में प्रवृत्त नहीं होती और न ही प्रवृत्त होने पर विनष्ट होती है। 'वह यह सीता मेरे स्वीकार योग्य है' इस प्रकार से प्रवृत्त (राम की मति ) रावण की प्रार्थना और लक्ष्मण के उत्साह से उद्दीप्त होती हुई, समुचित चिन्ता, वितर्क, व्रीडा, अवहित्था, स्मृति इत्यादि द्वारा समयोचित उत्तर से अनुमान की जाती हुई, धैर्य उदारता इत्यादि द्वारा उदात्तरस के रूप में उत्पन्न होती है।
अत्र तावत्सीताविषया आत्मस्वीकारयोग्यत्वनिश्चयरूपा रामस्य मतिस्तु रतेरुत्पत्तिमात्रकारणमेव, तदनिश्चये रतेरनौचित्यात् ।
अत्र न्यायः । साधारण्यनिश्चयो मतिः । तस्याः स्थायित्वमिच्छाम इति चेद् न । सा हि रावणविषयलज्जासूयादोषनिराकरणद्वारेण कार्यकरणापराङ्मुखी भावलक्षणलोकोत्तरत्वप्राप्तिव्यावसायरूपं रामोत्साहं भावकास्वादयोग्यतया प्रोत्साहयति ।
मति के स्थायिभावत्व का निराकरण- यहाँ तो सीता- विषयक आत्मस्वीकार की योग्यता वाली निश्चयरूप राम की मति तो उस अनिश्चिता के होने पर रति का अनौचित्य होने से रति की उत्पत्तिमात्र का कारण ही है।
इस विषय में यह नियम है- सामान्य रूप से निश्चय करना मति कहलाता है। (शङ्का) - यदि उस (मति) का स्थायिभावत्व होना अभिलषित हो तो ? समाधान - ऐसा (मति का स्थायिभावत्व) नहीं हो सकता, क्योंकि वह (मति) रावण- विषयक लज्जा निन्दा