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द्वितीयो विलासः
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अत्र प्राक्तनवृत्तान्तापह्नवजनितो दुष्यन्तविषयकः शकुन्तलारोषो भ्रूभेदादिभिर्व्यज्यते।
यहाँ पूर्ववृत्तान्त छिपाने के कारण उत्पन्न दुष्यन्त-विषयक शकुन्तला का रोष भ्रूभेद इत्यादि द्वारा व्यञ्जित होता है।
अथ शोकः
बन्धुव्यापत्तिदौर्गत्यधननाशादिभिः कृतः ।।१४०।। चित्तक्लेशभरः शोकस्तत्र चेष्टा विवर्णता ।
बाष्पोद्गमो मुखे शोषः स्तम्भनिःश्वसितादयः।।१४१।। (६) शोक -
बन्धुओं की विपत्ति, दुर्गति, धन के विनाश इत्यादि द्वारा किया गया चित्त का क्लेश शोक कहलाता है। उसमें विवर्णता, आँसू निकलना, मुख का सूख जाना, जड़ता, नि:श्वास इत्यादि विक्रियाएँ होती हैं।।१४०उ.-१४१॥
उत्तमानामयं प्रौढो विभावैरन्यसंश्रितै । आत्मस्थैरधिरुढोऽपि प्रायः शैर्येण शाम्यति ।।१४२।।
तत्र चेष्टा गुणाख्याननिगूढरुदितादयः ।
उत्तम व्यक्ति का शोक- उत्तम लोगों का यह शोक परगत (अन्य के आश्रित) विभावों से प्रौढ़ (परिपुष्ट) होता है और स्वंगत( विभावों) से बढ़ा हुआ (शोक) प्राय: शौर्य से शान्त होता है। उसमें गुणों की चर्चा, छिपकर भीतर-भीतर रोना इत्यादि चेष्टाएँ होती हैं।।१४२-१४३पू.॥
परगतविभावैर्यथा
देवो रक्षतु वः किलाननपरिव्याकीर्णचूडाभरां भर्तुर्भस्मनि पेतुषीं करतलव्यामृष्टपार्श्वक्षितिम् ।। हा प्राणेश्वर! हा स्मरेति रुदतीं बाष्पाकुलाक्षीं रतिं
दृष्ट्वा यस्य ललाटलोचनमपि व्याप्ताश्रु निर्वापितम् ।।412।। अत्र रतिगतशोच्यदशाविलोकनेन देवस्य शोको बाष्पोद्गमेन व्यज्यते। परगत विभावों से शोक जैसे
मुख पर जूड़े के बालों को बिखरायी हुई, पति (कामदेव) के भस्म (जले शरीर की राख) पर लोटती हुई, हथेलियों को समीप में फैलायी हुई हाय प्राणेश्वर; हाय काम! इस प्रकार रोती हुई, आँसुओं से व्याकुल नेत्रों वाली रति को देख कर जिस के ललाट की आँख भी भरे हुए आँसुओं को गिराने लगी, वे देव (शङ्कर) तुम्हारी रक्षा करें।।412।।
यहाँ रति विषयक चिन्तनीय दशा को देखने से शिव का शोक आँसुओं के
रसा.१८