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द्वितीयो विलासः
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वदत्येवं राम विवलितमुखी वल्कलमुर
स्थले कृत्वा वद्ध्वा कचभरमुदस्थादृषिवधूः ।।402।। जैसे
शिला के प्रकम्पित होने पर, शिव-शिव यह उच्चारण करते हुए (राम के) कठिन अथवा पीड़ित नारी की छाया (के रूप में विद्यमान अहिल्या) के समीप में जाने पर, और 'अरे! (यह तो) स्त्री की समृद्धि (स्थिति) को प्राप्त कर रही है' इस प्रकार राम के कहने पर वह विवलित मुख वाली हुई ऋषिपत्नी (अहिल्या) चेतनायुक्त हो जाने के कारण वल्कल को (अपनी) छाती पर करके (वल्कल से छाती को ढककर) और (बिखरे हुए) बालों के समूह (भार) को बाँधकर खड़ी हो गयी।।402।।
अथ क्रोधः__वधावज्ञादिभिश्चित्तज्ज्वलनं क्रोध ईरितः । (५) क्रोध- वध और तिरस्कार से चित्त का जलना क्रोध कहलाता है।
एषत्रिधाभवेत्क्रोधकोपरोषप्रभेदतः ।।१२८।।
क्रोध के प्रकार- यह क्रोध, कोप तथा रोष के भेद से तीन प्रकार का होता है।।१२८उ.।।
वधच्छेदादिपर्यन्तं क्रोधः क्रूरजनाश्रयः । अभ्यर्थनावधिः प्रायः कोपो वीरजनाश्रयः ।।१२९।।
शत्रुभृत्यसुहृत्पूज्याश्चत्वारो विषयास्तयोः ।
क्रूर लोगों के आश्रित क्रोध वध तथा छिन्नभिन्न कर देने तक और वीर लोगों के आश्रित क्रोध अनुरोध पर्यन्त रहता है। इन दोनों के लक्ष्य शत्रु, भृत्य (नौकर), मित्र तथा पूज्य लोग होते हैं।।१२८-१३०पू.
मुहुर्दष्टोष्ठता भुग्नभृकुटी दन्तघट्टनम् ।।१३०।। हस्तनिपीडनं गात्रकम्पः शस्त्रप्रतीक्षणम् ।
स्वभुजावेक्षणं कण्ठगर्जाद्या शात्रवनुधि ।।१३१।।
शत्रुविषयक क्रोध में चेष्टाएँ- शत्रुविषयक क्रोध में बार ओठों का काटना, भौहें टेढ़ी होना, दाँतों को रगड़ना (दबाना), हाथों को मीचना, शरीर में कम्पन, शस्त्रों को देखना, अपनी भुजाओं को देखना, गर्जना करना इत्यादि चेष्टाएँ होती है।।१३०उ.-१३१॥
वधेन शत्रुविषयक्रोधो यथा (वेणीसंहारे ३.२४)
कृतमनुमतं दृष्टं वा यैरिदं गुरुपातकं मनुजपशुभिर्निमर्यादैर्भवद्भिरुदायुधैः ।