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द्वितीयो विलासः
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वामेतराक्षिस्फुरणेन जानन्
करस्थितां राघवकार्यसिद्धिम् ।।397 ।। अत्र हनूमतः स्वशक्तिजनितः समुद्रतरणोत्साहः महेन्द्रारोहेण व्यज्यते। शक्ति से सहज उत्साह जैसे
इसके बाद दाहिनी आँख फड़कने (के शुभ शकुन) से रामकार्य (सीता की खोज) की सिद्धि को हस्तगत हुआ जानकर हनुमान समुद्र को लॉघने के लिए महेन्द्र पर्वत चढ़ गये।।397 ।।
यहाँ हनुमान् के समुद्रतरण का अपनी शक्ति से उत्पत्र उत्साह महेन्द्र (पर्वत) पर आरोहण (चढ़ने) से व्यञ्जित होता है।।
अथ धैर्येण यथा
शक्तया वक्षसि मग्नया सह मया मूढे प्लवङ्गाधिपे निद्राणेषु च विद्रवत्सु कपिषु प्राप्तावकाशे द्विषि । मा भैष्टेति निरुन्धतः कपिभटानस्योर्जितात्मस्थितेः
सौमित्रेरधियुद्धभूमिगदिता वाचस्त्वया न श्रुताः ।।398।।
अत्र रावणशक्तिप्रहारेण क्षीणशक्तेरपि लक्ष्मणस्य धैर्यजनितोत्साहः कपिभटाश्वासनादिभिर्व्यज्यते।
धैर्य से सहज उत्साह जैसे
(लक्ष्मण के) वक्षस्थल पर मेरे द्वारा शक्ति के प्रहार करने के साथ ही वानरों के अधिपति (सुग्रीव) के जड़ीभूत हो जाने पर, वानर (सेनाओं) के शिथिल हो जाने और (इधरउधर) भागने पर, शत्रुओं से अवकाश पाकर 'मत डरो' इस प्रकार वानर- योद्धाओं को घेरते (नियन्त्रित करते) हुए तथा अपनी स्थिति को दृढ़ बनाते हुए इस लक्ष्मण की युद्धभूमि में कही गयी वाणी (बात) को तुमने नहीं सुना।।398।।।
यहाँ रावण द्वारा शक्तिप्रहार से क्षीण शक्ति वाले लक्ष्मण का धैर्य से उत्पन्न उत्साह वानर योद्धाओं के लिए दिये गये आश्वासन से व्यञ्जित होता है।
सहायेन सहजोत्साहो यथा (रघुवंशे ४/२६)
स गुप्तमूलप्रत्यन्तः शुद्धपाणिरयान्वितः ।
षड्विधं बलमादाय प्रतस्थे दिग्जिगीषया ।।399।। सहायक से सहज उत्साह जैसे (रघुवंश ४/२६ में)
दुर्ग आदि की रक्षा का प्रबन्ध कर, पृष्ठदेशस्थ राजाओं के उन्मूलक रघु यात्रा के समय मङ्गलाचरण करके छः प्रकार की सेना के साथ दिग्विजयेच्छा से चले।।399।।
शक्त्याहार्योत्साहो यथा (बालरामायणे १.५३)
हस्तालम्बितमक्षसूत्रवलयं कर्णावतंसीकृतं