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रसार्णवसुधाकरः
पूज्य-विषयक क्रोध में चेष्टाएँ- पूज्य विषयक क्रोध में अपनी निन्दा करना, विनम्र कुटिलता, उत्तर न देना, शरीर में पसीना आना, हकलाना इत्यादि चेष्टाएँ होती है।।१३४उ.-१३५पू.॥
यथा वीरानन्दे
रामप्रवासजननी जननीं विलोक्य रूक्षं विवक्षुरपि गद्गर्दिका दधानः । नम्राननः कुटिलरज्यदपाङ्गदृष्टि
ज्वाल चेतसि परं भरतो महात्मा ।।407 ।। पूज्यविषयकक्रोध जैसे वीरानन्द में
राम के वन भेजने में (कारण) उत्पन करने वाली माता (कैकेयी) को देखकर कुटिल नेत्रप्रान्त वाले तथा कटु बोलने की इच्छा करने वाले महात्मा भरत हकलाते हुए मन (हृदय) में अत्यधिक जलने लगे।।407।।
शत्रुक्रोधे तु चेष्टाः स्युर्भावगर्भितभाषणम् ।। १३५।।
भ्रूभेदनिटिलस्वेदकटाक्षारुणिमादयः ।
शत्रुविषयक क्रोध में चेष्टाएँ- शत्रु-विषयक क्रोध में भावगर्भित भाषण, भौहों का तन जाना, मस्तक पर पसीना हो जाना, कटाक्ष, लालिमा इत्यादि चेष्टाएँ होती है।।१३५उ.-१३६पू.॥
यथा (उत्तरामचरिते ५/३५)
कोपेन प्रविधूतकुन्तलभरः सर्वाङ्गजो वेपथुः किञ्चित्कोकनदच्छदेन सदृशे नेत्रे स्वयं रज्यतः । धत्ते कान्तिमिदं च वक्त्रनयनयोर्भङ्गेन भीमभ्रुवो
श्चन्द्रस्योद्भटलाञ्छनस्य कमलस्योद्घान्तभृङ्गस्य च ।।408 ।। अत्र लवस्य चन्द्रकेतोश्च परस्परविषयःकोपो भूभेदादिभिर्व्यज्यते। शत्रुविषयक क्रोध जैसे (उत्तररामचरित ५/३५ में)
कोप से केशों को अत्यधिक हिलाने (कम्पित करने) वाला समस्त शरीर में उत्पन्न कम्पन प्रकट हो रहा है। स्वभाव से ही रक्तकमल के पत्र के समान दोनों नेत्र लाल हो रहे हैं। भ्रूमङ्ग से भयङ्कर हुआ इन दोनों का मुख भी कलङ्की चन्द्रमा और ऊपर घूमने वाले भंवरों से युक्त कमल भी कान्ति को धारण कर रहा है।।408 ।।
___ यहाँ लव और चन्द्रकेतु का परस्पर एक दूसरे के प्रति क्रोध भ्रूभेद इत्यादि द्वारा व्यञ्जित होता है।
भृत्यादिकोपत्रितये तत्तत्कोपोचिता क्रियाः ।।१३६।।