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द्वितीयो विलासः
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अथ राग:
दुःखमप्यधिकं चित्ते सुखत्वेनैव रज्यते ।।११६।।
येन स्नेहप्रकर्षेण स राग इति गीयते ।
(५) राग- अत्यधिक दुःख भी चित्त में जिस स्नेह की उत्कृष्टता से सुख रूप से रञ्जित होता है वह राग कहलाता है।।११६उ.-११७पू.॥
कुसुम्भनीलीमाञ्जिष्ठरागभेदेन स त्रिधा ।।११७।।
राग के भेद (अ) कुसुम्भराग (आ) नीली राग और (३) माञ्जिष्ठ भेद से राग तीन प्रकार का होता है।।११७उ.॥
कुसुम्भरागः स ज्ञेयो यश्चित्ते सज्जति क्षणम् ।
अतिप्रकाशमानोऽपि क्षणादेव विनश्यति ।।११८।। (अ) कुसुम्भराग- कुसुम्भराग वह राग है जो चित्त में क्षण भर में उत्पन्न होता है और अत्यधिक प्रकाशित होता हुआ क्षण भर में ही विनष्ट हो जाता है।।११८॥
यथा (गाथासप्तशत्याम् १/७२)
बहुबल्लहस्स जा होइ वल्लहा अहवि पञ्च दिअहाइं । ता किं छ8 मिग्गइ जस्सिं ट्ठि अ वहुअं अ ।।391 ।। (बहुवल्लभस्य का भवति वल्लभाथवा पञ्च दिवसान् ।
तत्किं षष्ठ मृग्यते यस्मिन् मृष्टं च बहु च।।) कुसुम्भराग जैसे (गाथासप्तशती १.७२में)
जो स्त्री बहुत प्रियाओं से प्रेम करने वाले की प्रिया होती है, वह किसी प्रकार पाँच दिन देख पाती है, फिर क्या वह छठे दिन की प्रतीक्षा करती है। अरी जो चीज बिल्कुल अनुकूल है, वह कही अधिक भी होती है क्या! अर्थात् अनुकूल चीज अधिक नहीं होती।।391 ।।
नीलीरागस्तु यः सक्तो नापैति न च दीप्यते ।
(आ) नीली राग- जो राग न स्थिर रहता है और न उद्दीप्त (प्रकाशित) रहता है, वह नीली राग कहलाता है।।११९पू.॥
यथा (कुमारसम्भवे१/५३)
यदैव पूर्वे जनने शरीरं सा दक्षरोषात् सुदती ससर्ज ।
तदा प्रभृत्येव विमुक्तसङ्गः पतिः पशूनामपरिग्रहोऽभूत् ।।392।। अत्र पशुपतिचित्तरागः सतीसङ्गमाभावनिश्चयेन नापैति विषयाभावान्न प्रकाशते च। नीली राग जैसे (कुमारसम्भव-११५३ में)-.. पार्वती ही प्रथम जन्म में दक्ष प्रजापति की कन्या थी और शङ्कर से व्याही थी, उन्होंने पिता