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द्वितीयो विलासः
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उस विमर्श से जैसे (मालतीमाधव १.१८ में)
इसका गमन आलस्य युक्त, दृष्टि सूनी, शरीर सौन्दर्यहीन, श्वास अधिक चलता हुआ है, यह क्या है? अथवा इससे भित्र क्या हो सकता है? संसार में कामदेव की आज्ञा विचरण कर रही है और यौवन विकारशील है अतः नाना प्रकार के ललित एवं मधुर भाव धैर्य को नष्ट कर देते हैं।।316।।
___ यहाँ माधव में चिन्ता को पाकर (देखकर) इसका कारण क्या है- यह विचार करते हुए मकरन्द द्वारा 'यह भाव कामदेव की आज्ञा से ही है' इस प्रकार सम्यक् निर्णय वाला वितर्क है।।
अथ चिन्ता
इष्टवस्त्वपरिप्राप्तेरैश्चर्यभ्रशनादिभिः ॥७१।। चिन्ता ध्यानात्मिका तस्यामनुभावा मता इमे ।
काधोमुख्यसन्तापनिःश्वासोच्छ्वसनादयः ।।७२।।
(२२) चिन्ता- अभीष्ट की अप्राप्ति ऐश्वर्य नाश इत्यादि के कारण चिन्तन चिन्ता कहलाता है। दुबलापन, अधोमुख होना, सन्ताप, निःश्वास, गहरी श्वॉस लेना इत्यादि इसके अनुभाव कहे गये हैं।।७१उ.-७२।।
इष्टवस्त्वलाभेन यथा--
ईसिवलिआवणआ से कूणिअपक्खन्ततारअ स्थिमिआ । दिट्टी कबोलपाली णिहिआ करपल्लवे मणो सुण्णं ।।317।। (ईषद्वलितावनतास्या:कूणितपक्षान्ततारका स्तिमिता ।
दृष्टिः कपोलपाली निहिता करपल्लवे मनः शून्यम् ।।) अभीष्ट की अप्राप्ति से चिन्ता जैसे
थोड़ा गतिशील और झुके हुए मुख वाली (इस नायिका) के नेत्र की पुतलियाँ पलकों से बन्द हो गयीं है, हाथ रूपी पत्ते पर कानों के कोरों तक गाल को टिकाया गया है- इस प्रकार इसका मन शून्य हो गया है।।317।।
ऐश्वर्यनाशेन यथा (कुमारसम्भवे २/२३)- ...
यमोऽपि विलिखन् भूमिं दण्डेनास्तमितत्विषा ।
कुरुतेऽस्मिनमोघेऽपि निर्वाणालातलाघवम् ।।318।। ऐश्वर्यनाश से चिन्ता जैसे (कुमारसम्भव २/२३ में)
यमराज भी अपने उस तेजहीन दण्ड से भूमि कुरेद रहे थे, जो अमोध होते हुए भी बुझी हुई उल्का के समान तुच्छ और व्यर्थ सा हो गया है।।318 ।।
रसा.१५