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द्वितीयो विलासः
स्वास्थ्य से स्मृति जैसे (अभिज्ञानशाकुन्तल ५ / २ में) -
मनोहर दृश्य देखकर और मीठे शब्द सुनकर सुखी रहता हुआ भी प्राणी जो उत्कण्ठित हो जाता है उससे लगता है कि निश्चय ही वह पहले से अज्ञात रूप में भावों से स्थायी बन गये अन्य जन्मों के सौहार्दों का मन ही मन स्मरण करता है ।।311।।
[ १७७ ]
चिन्तया यथा ( मालतीमाधवे ५.१० ) -
लीनेव प्रतिबिम्बितेव लिखितेवोत्कीर्णरूपेव च प्रत्युप्तेव च वज्रलेपघटितेवान्तर्निखातेव च । सः नश्चेतसि कीलितेव विशिखैश्चेतोभुवः पञ्चभिश्चिन्तासन्ततिजन्तुजालनिबिडस्यूतेव लग्ना प्रिया ॥। 312।। चिन्ता से स्मृति जैसे ( मालतीमाधव ५ / १० में) -
यह प्रिया ( मालती) लीन सी, प्रतिबिम्बित सी, खोद (उत्कीर्ण) कर बनायी सी जड़ी गयी सी, वज्र - लेप से रची गयी सी, अन्तःकरण में गड़ी सी, कामदेव के पाँच बाणों के द्वारा कील दी गई सी चिन्तासन्दान रूपी तन्तुओं से मजबूती के साथ सिली सी हमारे चित्त में लगी है। 131211 दृढाभ्यासेन यथा ( रसकालिकायाम् )
तद्वक्त्रं नयने च ते स्मितसुधामुग्धे च तद्वाचिकं
सा वेणीस भुजक्रमोऽतिसरलो लीलालसा सा गतिः । तन्वी सेति च सेति सेति सततं तद्ध्यानबद्धात्मनो
निद्रा नो न रतिर्न चापि विरतिः शून्यं मनो वर्तते ।। 313।।
दृढ़ाभ्यास से स्मृति जैसे (रसकलिका मे) -
(प्रियतमा का) वही मुख, वही आँखे, मुस्कान रूपी अमृत से युक्त वही मधुर वाणी, वही वेणी, वही अतिसरल भुजाओं का विन्यास, वही लीला से अलसाया हुआ गमन, वही कोमलाङ्गी है, वही है, वही है - इस प्रकार उसी के ध्यान में वशीभूत हुए मुझे न निद्रा आती है, न रति होती है, न विरक्ति होती है (क्योंकि) मन (चेतना से) शून्य हो गया है। 1131311 सदृशावलोकनेन यथा (विक्रमोर्वशीये ३.५ ) -
आरक्तराजिभिरयं कुसुमैर्नवकन्दलीसलिलगर्भैः ।
कोपादन्तर्बाष्पे स्मरयति मां लोचने तस्याः ।।314।।
समान दशा देखने से जैसे (विक्रमोर्वशीय ३ / ५ में) -
यह नूतन कन्दली, जलयुक्त मध्यभाग वाले तथा चारो ओर से लाल रेखाओं से युक्त पुष्पों के द्वारा, क्रोध के कारण जिनमें आँसू भर आए हैं, ऐसे उस प्रिया (उर्वशी) के नेत्रों का मुझे स्मरण दिलाते हैं । 314 ।।