________________
[१९०]
रसार्णवसुधाकरः -
यह तो बताओं कि किस वीर को तुमने आज तक जीता? यदि भुजदण्डों का घमण्ड हो तो आओ, मेरे साथ धनुष उठाओ!।।344।।
अथ चापलम्
रागद्वेषादिभिश्चित्तलाघवं चापलं भवेत् । चेष्टास्तत्राविचारेण परिरम्भावलम्बने ।।८६।।
निष्कासनोक्तिपारुष्यताडनाज्ञापनादयः । __ (३०) चपलता- राग, द्वेष आदि से चित्त की लघुता चपलता कहलाती है। उसमें बिना विचार किए आलिङ्गन करना, कथन में कठोरता, पीटना, सूचित करना इत्यादि चेष्टाएँ होती है।।८६-८७पू.॥
रागेण यथा (शिशुपालवधे ७.५१)
विजनमिति बलादमुं गृहीत्वाक्षणमथ वीक्ष्य विपक्षमन्तिकेऽन्या । अभिपतितुमना लघुत्वभीते
रभवत मुञ्चति वल्लभेऽतिगुर्वी ।।345।। राग से चपलता जैसे (शिशुपालवध ७/५१ में)
'एकान्त है' इस कारण से इस (प्रियतम) को बलात् पकड़कर उसी क्षण समीप में सपत्नी को देखकर अपनी लघुता के भय से (सपत्नी के देखने से पहले ही) (वहाँ से) खिसकने की इच्छा करती हुई प्रियतम को छोड़ कर गौरवान्वित हो गयी।।345।।
द्वेषेण यथा (बालरामायणे ५/४९)
पादाघातैः सुरभिरभितः सत्वरं ताडनीयो गाढामोदं मलयमरुतः शृङ्खलादाम दत्त । कारागारे क्षिपत तरसा पञ्चमं रागराज
चन्द्रं चूर्णीकुरुत च शिलापट्टके पिष्टबिम्बम् ।।346।।
अत्र सीताविरहेण रावणस्य वसन्तादिविषयद्वेषेण तत्तदधिदेवतानां ताडनाज्ञापनादिभिरनुभावैश्चापल्यं धोत्यते।
द्वेष से चपलता जैसे (बालरामायण ५/४९ में)
इस सुरभि को पैरों के आघात से मारना चाहिए, अत्यधिक आनन्दित मलयाचल से आने वाली हवा को कस कर रस्सी में बाँधने का दण्ड दिया जाय, रागराज पञ्चम (राग) को शीघ्र जेल में डाल दिया जाय और चन्द्रमा को शिलापट्टक पर पीसे बिम्ब वाला करके चूर्ण बना दिया जाय।।346।।