________________
रसार्णवसुधाकरः
वर्णों की अधिकता वाली पदसङ्घटना कठिना रीति होती है। यह उस (गौड देश ) के लोगों के मनोनुकूल होने के कारण गौड़ीया (या गौड़ी) रीति भी कहलाती है ।। २३९॥
यथा
[ ९८ ]
गण्डग्रावगरिष्ठगैरिकगिरिक्रीडत्सुधान्धोवधू
बाघालम्पटबाहुसम्पदुदयद्दुर्वारगर्वाशयम् मर्त्यामर्त्यविरावणं बलगृहीतैरावणं रावणं
बाणैर्दाशरथी रथी रथगतं विव्याध दिव्यायुधः ।।154।।
अत्र दीर्घसमासत्वं महाप्राणाक्षरप्रायत्वं च स्पष्टम् ।
जैसे
1
बड़ी-बड़ी चट्टानों वाले घने गेरु के पर्वत पर क्रीड़ा करती हुई और सुधारस (देवताओं का एक प्रकार का पेय) से मत्त ( देवताओं की) रमणियों को उत्पीड़ित करने की अभिलाषी भुजाओं की प्रसन्नता के अभ्युदय से दुर्निवार्य गौरव की अधिकता वाले, मनुष्य और देवताओं को (अपने अत्याचार) से रूलाने वाले, ( उड़ने के भय से अपने दुपट्टे को) बलपूर्वक पकड़े हुए तथा रथ पर सवार रावण को दिव्यास्त्र वाले रथी ( रथ पर सवार) राम ने (अपने) बाणों से मार डाला । 115411
अत्र दीर्घसमासत्वं महाप्राणाक्षरप्रायत्वं च स्पष्टम् ।
यहाँ लम्बे समास और महाप्राणवर्णों की अधिकता स्पष्ट है। अथ मिश्रा
यत्रो भयगुणप्रामसन्निवेशस्तुलाधृतः
।
सा मिश्रा सैव पाञ्चाली तद्देशजप्रिया ।। २४० ।।
३. मिश्रा रीति- जहाँ (कोमला तथा कठिना) दोनों रीतियों के गुणों का बराबर
बराबर (तुलाधृत) सन्निवेश होता है, वह मिश्रा रीति कहलाती है ॥ २४०॥,
यथा (रत्नावल्याम् २ / १३)परिम्लानं
पीनस्तनजघनसङ्गादुभयत
स्तनोर्मध्यस्यान्तःपरिमिलनमप्राप्य हरितम् ।
इदं व्यस्तन्यासं श्लथभुजलताक्षेपवलनैः
कृशङ्ग्याः सन्तापं वदति बिसिनीपत्रशयनम् ।।155 ।।
जैसे (रत्नावली २.१३ में ) -
मोटे-मोटे स्तनों और जाँघों के सम्पर्क से दोनों ओर से म्लान (मुरझाई हुई) क्षीण मध्य (कटिभाग) के सम्पर्क को न पाकर बीच में हरी और शिथिल बाहुलताओं के इधर-उधर प्रक्षेप