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द्वितीयो विलासः
अत्र गर्वितरावणकृतेन मर्त्यनिराकरणाभयवरणेन जाता माल्यवतः शङ्का मर्मणि स्पृशतीत्यादिना वागारम्भेण प्रतीयते ।
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यहाँ गर्वित रावण द्वारा माँगे गये मृत्युनिराकरण के अभय से उत्पन्न माल्यवान् की शङ्का 'हमारे हृदय में चुभ रही है' इस कथन से सूचित हो रही है ।
अथ त्रास:
त्रासस्तु चित्तचाञ्चल्यं विद्युत्क्रव्यादगर्जितैः ।। ३० ।। तथा भूतभुजङ्गाद्यैर्विज्ञेयास्तत्र विक्रियाः । उत्कम्पगात्रसङ्कोचरोमाञ्चस्तम्भगद्गदा मुहुर्निमेषविभ्रान्तिपार्श्वस्थालम्बनादयः
।।३१।।
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(९) त्रास - विद्युत, हिंसक पशुओं की गर्जना तथा भूत, हिंसकजीव ( सर्प इत्यादि) से चित्त की चञ्चलता ही त्रास कहलाती है। इसमें कम्पन, शरीर का सिकोड़ना, रोमाञ्चित हो जाना, जड़वत हो जाना, हकलाहट, बार-बार देखना, भ्रमित हो जाना, समीपवर्ती का सहारा लेना इत्यादि क्रियाएँ होती हैं । । ३०उ. - ३२पू.।।
विद्युतो यथा
वर्षासु तासु क्षणरुक्प्रकाशात् त्रस्ता रमा शार्ङ्गिणमालिलिङ्ग ।
विद्युच्च सा वीक्ष्य तदङ्गशोभां
हीणेव तूर्णं जलदं जगाहे ।।263 ।। विद्युत से त्रास जैसे
उस वर्षाकाल में विद्युत् के प्रकाश से भयभीत लक्ष्मी ने शार्ङ्ग (धनुष) को धारण करने वाले (विष्णु) का आलिङ्गन कर लिया और वह विद्युत् उस (लक्ष्मी के) अङ्गों की सुन्दरता को देख कर लज्जा के समान शीघ्रता से बादल में छिप गयी । । 263।।
क्रव्यादो हिंस्रसत्त्वम् ।
तस्माद्यथा
स्वविक्रियादर्शितसाध्वसेन प्रियाभिरालिङ्गितकन्धराणाम् ।
अकारि भल्लूककुलेन यत्र विद्याधराणामनिमित्तमैत्री ।।264।। क्रव्याद= हिंसक पशु |
उस (हिंसक पशु) से त्रास जैसे
जहाँ (हिमालय पर) अपनी क्रिया से भय दिखाने वाले भालुओं के समूह ने प्रियाओं
द्वारा आलिङ्गन किये गये कन्धों वाले विद्याधरों की अकारण मित्रता करवा दिया । । 264 ।।