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द्वितीयो विलासः
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(१३) व्याधि- दोषों की अधिकता तथा वियोग इत्यादि से जो ज्वर होता है, वह व्याधि कहलाता है। इसमें शरीर का स्तम्भित होना, अङ्गों की शिथिलता, कूँ कूँ की ध्वनि करना, मुख का सूखना, लुढ़कना, अङ्गों का झटकना, नि:श्वास इत्यादि चेष्टाएँ होती हैं।।४९-५०पू.।।
सशीतो दाहयुक्तश्च सशीते तत्र विक्रियाः ।।५।। हनुसञ्चालनं बाष्पः सर्वाङ्गोत्कम्पकूजने ।
जानुकुञ्चनरोमाञ्चमुखशोषादयोऽपि च ।।५१।। व्याधि के प्रकार- यह (व्याधि) दो प्रकार की होती है- (१) सशीत और (२) दाहयुक्त।
सशीत व्याधि- सशीत (व्याधि) में जबड़ों का सञ्चालन, अश्रुपात, सभी अङ्गों में कम्पन, कूँ कूँ की ध्वनि करना, घुटनों का सिकोड़ना, रोमाञ्चित होना, मुख का सूख जाना इत्यादि चेष्टाएँ होती हैं।॥५०उ.-५१॥
यथा
रोमाञ्चमङ्करयति प्रकामं स्पर्शेन सर्वाङ्गिकसङ्गतेन ।
दोःस्वस्तिकाश्लिष्टपयोधराणां शीतज्वरः कान्त इवाङ्गनानाम् ।।283 ।। जैसे
मङ्गलचिन्ह से युक्त स्तनों वाली अङ्गनाओं का शीतज्वर प्रियतम के समान सभी अङ्गों के स्पर्श से अत्यधिक रोमाञ्च को अङ्कुरित करता है।।283 ।।
दाहज्वरे तु चेष्टाः स्युः शीतमाल्यादिकाङ्क्षणम् ।
पाणिपादपरिक्षेपमुखशोषादयोऽपि च ।। ५.२।।
दाहयुक्त- दाहयुक्तज्वर में शीतल माला इत्यादि की अभिलाषा, हाथों और पैरों का इधर उधर फैलाना, मुख का सूखना इत्यादि चेष्टाएँ होती है।।५२।।
यथा
शय्या पुष्पमयी परागमयतामङ्गार्पणादश्नुते ताम्यन्त्यन्तिकतालवृन्तनलिनीपत्राणि देहोष्मणा । न्यस्तं च स्तनमण्डले मलयजं शीर्णान्तरं दृश्यते
क्वाथाशु भवन्ति फेनिलमुखा भूषामृणालाङ्करा ।।284।। जैसे
नायिका के शरीर की गर्मी से पुष्पयुक्त शय्या अङ्गों के रखने के कारण परागयुक्त हो गयी है। समीपवर्ती कमल के पत्तों के पंखे शान्ति प्रदान करते हैं। स्तनों के घेरे पर लगाया गया चन्दन फटा हुआ (चिरचिराया हुआ) दिखायी पड़ रहा है। काढ़े (क्वाथ) से शीघ्र ही मुख से