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प्रथमो विलासः
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भूमि और अवस्था के संयोग से तथा भगवान् के पादविन्यास से उस समय भूमि भारवती हो गयी। इस कारण से भी भारती हुई।।२५२उ.-२५३पू.॥
वहाँ शार्ङ्गधनुष को धारण करने वाले भगवान् के आवर्तन-रहित उत्तेजित तथा नचाएँ गये सत्त्व (गुण) की अधिकता वाली भुजाओं से सात्वती वृत्ति उत्पन्न हुई।।२५३उ.२५४पू.॥
विचित्रैरङ्गहारैश्च हेलया च तदा हरिः ।। २५४।।
यत् तौ बबन्ध केशेषु, जाता सा कैशिकी ततः ।।
उस समय विचित्र अङ्गों के हावभाव तथा तिरस्कार के साथ भगवान् ने उन दोनों को केशों (बालों) में बाँध दिया। उससे वह कैशिकी (वृत्ति) उत्पन्न हुई।।२५४उ.-२५५पू.।।
ससंरम्भैः सवेगैश्च चित्रचारीसमुत्थितैः ।। २५५।।
नियुद्धकरणैर्जाता चित्रैरारभटी ततः ।
तब विक्षोभ करने वाले, तीव्रगति वाले और विचित्र रूप से घटित घमासान युद्ध करने की विचित्रता से आरभटी (वृत्ति) उत्पन्न हुई।।२५५उ.-२५६पू.।।
तस्माच्चित्रैरङ्गहारैः कृतं दानवमर्दनम् ।। २५६।।
इसी कारण अङ्गों के विचित्र हावभाव से दैत्यों (मधु और कैटभ) का मर्दन किया।।२५६उ.।।
तस्मादब्जभुवा लोके नियुद्धसमयक्रमः । यः शास्त्रादिमोक्षेषु न्यायः परिभाषितः ।। २५७।। नाट्यकाव्यक्रियायोगरसभावसमन्वितः ।
स एव समयो धात्रा वृत्तिरित्येव संज्ञितः ।। २५८।।
उस समय कमल से उत्पन्न (ब्रह्मा) के द्वारा घमासान युद्ध के क्रमानुसार शास्त्रादिमोक्ष के लिए जो सिद्धान्त परिभाषित किया गया, वह ही रसों और भावों से युक्त नाट्य-काव्य की रचना के निमित्त 'वृत्ति' नाम से अभिहित किया।।२५७-२५८॥
हरिणा तेन यद्वस्तु वल्गितैर्यादृशं कृतम् ।
तद्वदेव कृता वृत्तिर्धात्रा तस्याङ्गसम्भवा ।। २५९।। ___ भगवान के द्वारा उत्तेजना से जो कार्य जिस प्रकार किया गया उसी प्रकार ही उनके अङ्ग से उत्पन्न विधाता (ब्रह्मा) द्वारा वृत्ति बनायी गयी।।२५९।।
ऋग्वेदाच्च यजुर्वेदात् सामवेदादथर्वणः । भारत्याद्याः क्रमाज्जाता इत्यन्ये तु प्रचक्षते ।।२६०।।