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द्वितीयो विलासः
मानसिक पीड़ा से (ग्लानि) जैसे ( उत्तररामचरित ३ / ५ में ) -
जैसे शरद ऋतु की धूप केतकी के फूल के भीतरी पत्ते को मलिन कर देती है, उसी तरह हृदय-कमल को सुखाने वाला, कठोर, बहुत बड़ा शोक, वृन्त (डंठल) से टूटे हुए सुन्दर पल्लव की तरह पीली और दुर्बल सीता के शरीर को मलिन करता है । । 238 ।। व्यधिना यथा ( रघुवंशे १९.५० ) -
तस्य पाण्डुवदनाल्पभूषणा सावलम्बगमना मृदुस्वना । राजयक्ष्मपरिहाणिराययौ कामयानसमवस्थयां तुलाम् ।।239 ।।
गम्यते ।
रोग से (ग्लानि) जैसे (रघुवंश १९ / ५० मे) -
राजयक्ष्मा से पीड़ित उस (अग्निवर्ण) का शरीर धीरे-धीरे पीला पड़ गया, दुर्बलता के कारण उसने आभूषण पहनना भी छोड़ दिया, वह नौकरों का सहारा लेकर चलने लगा, उसकी बोली धीमी पड़ गयी और सूखकर विरहियों के समान दीखने लगा । । 239 ।।
जरया यथा (रत्नावल्याम् ४/१३)
विवृद्धिं कम्पस्य प्रथयतितरां साध्वसवशा
दविस्पष्टां दृष्टिं तिरयतितरां बाष्पसलिलैः । स्खलद्वर्णां वाणीं जनयतितरां गद्गदादिकया
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जरायाः साहाय्यं मम हि परितोषोऽकुरुते । । 24011
अत्र हर्षस्य जरासहकारित्वकथनादुभयानुभावैः कम्पादिभिर्जराग्लानेरेव प्राधान्यं
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वृद्धावस्था से ग्लानि जैसे (रत्नावली ४ / १३ मे) -
(ब्राभव्य विदूषक से कहता है - ) आज मेरा सन्तोष भयवश शरीर कम्पन को और भी बढ़ा रहा है, अश्रु-प्रवाह से धुंधली बनी हुई दृष्टि और भी अधिक धुँधली बन रही है। हृदय गद्गद् होने को कारण लड़खड़ाती हुई वाणी और भी अधिक जड़वत् बना रही है । वास्तव में यह सब कम्पन, दृष्टि-वैषम्य, वाणी का लड़खड़ाना आदि सब कुछ बुढ़ापे की सहायता ही कर रहे हैं अर्थात् जो क्रियाएँ बुढ़ापे में होती है कम्पनादि से उनमें वृद्धि ही हो रही है । 1 2401 यहाँ हर्ष का वृद्धावस्था के कारण कथन होने से कम्पन इत्यादि के द्वारा ग्लानि का ही प्राधान्य स्पष्ट होता है।
तृष्णया यथा ( बालरामायणे ६.५० ) -
विन्ध्याध्वानो विरलसलिलास्तर्षिणी तत्र सीता यावन्मूर्च्छा कलयति किल व्याकुले रामभद्रे । द्राक् सौमित्रिः पुटजकलशैर्मालुधानीदलानां तावत्प्राप्तो दधदतिभृतां वारिधानीं करेण ।। 241 ।।