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रसार्णवसुधाकरः
(६) मद- मदिरा से उत्पन्न आनन्द व घबराहट (मूर्छा, बेहोशी) का मिश्रण ही मद कहलाता है। यह तरुण, मध्यम और अपकृष्ट (नीच) भेद से तीन प्रकार का होता है।।१६॥
अथ तरुण:
दृष्टिः स्मेरा मुखे रागः सस्मिताकुलितं वचः ।
ललिताविद्धगत्याद्याश्चेष्टाः स्युस्तरुणे मदे ।।१७।।
(१) तरुण मद की चेष्टाएँ- तरुण मद में प्रफुल्लित दृष्टि, मुख में रक्तिमा, मुस्कराहट-युक्त वचन, लालित्ययुक्त गति आदि चेष्टाएँ होती है।।१७।।
यथा (शिशुपालवये १०/१३)
हावहारि हसितं वचनानां कौशलं दृष्टिविकारविशेषाः ।
चक्रिरे भृशमृजोरपि वध्वाः कामिनेव तरुणेन मदेन ।।247।। जैसे (शिशुपालवध १०/१३ में)
कामी युवक के समान मद ने भोली (मुग्धा) वधू में भी हाव से मनोहर हँसी, वचनों का कौशल तथा दृष्टि में विशेष प्रकार के विकार अत्यधिक मात्रा में उत्पन्न कर दिये।।247 ।।
अथ मध्यमः
मध्यमे तु मदे वाचि स्खलनं दशि घूर्णता
गमने विकृतिर्बाहोर्विक्षेपस्रस्ततादयः ।।१८।।
(२) मध्यम मद की चेष्टाएँ- मध्यम मद में वाणी में स्खलन, नेत्रों में चञ्चलता, गमन में विकार, भुजाओं को इधर-उधर हिलाना, भयभीत होना इत्यादि (चेष्टाएँ होती है)।।१८॥
यथा (किरातार्जुनीये ९/६७)
रुन्धती नयनवाक्यविकासं सादितोभयकरा परिरम्भे ।
वीडितस्य ललितं युवतीनां क्षीबता बहुगुणैरनुजते ।।248।। जैसे किरातार्जुनीय ९/६७ में)
नेत्रों और वाक्यों के विकास को रोकती हुई तथा आलिङ्गन में दोनों हाथों को स्तब्ध (निश्चल) बनाने वाली युवतियों की मदिरा की मत्त ताने, नेत्र-संकोच आदि बहुत से गुणों से लज्जा के विकास का अनुकरण कर लिया।।248।।
अथ नीच:
अपकृष्टे तु चेष्टा स्युर्गतिभङ्गो । विसंज्ञता ।
निष्ठीवनं मुहुःश्वासो हिक्का छादयो मताः ।।१९।।
(३) अपकृष्ट मद की चेष्टाएँ- नीच मद में गति में लड़खड़ाहट, निश्चेष्टता, थूकना,बार-बार श्वास लेना, अस्पष्ट ध्वनि, उल्टी होना इत्यादि चेष्टाएँ होती है।।१९।।