________________
प्रथमो विलासः
[१०५]
त्रिशिरा में भेद अभिहित है, अत: सङ्घात्य है।
पौरुषाद् यथा (किरातार्जुनीये १५.१)
अथ भूतानि कर्णघ्नशरेभ्यस्तत्र तत्रसुः ।
भेजे दिशः परित्यक्तमहेष्वासा च सा चमूः ।।160।। अत्रार्जुनपराक्रमेण प्रमथपलायनकथनात् सनात्यः । पौरुषबल से जैसे (किरातार्जुनीय १५.१ में)
इसके बाद रणभूमि में सारे प्राणी अर्जुन के बाणों से डर गये और वह शबराकृति प्रमथ-सेना भी बड़े-बड़े अपने शस्त्रों को त्याग कर दिशाओं में भाग गयी।।160।।
यहाँ अर्जुन के पराक्रम से शङ्करजी को भाग जाने का कथन होने से सङ्घात्य है। अथ परिवर्तकः
पूर्वोक्तस्य च कार्यस्य परित्यागेन यद्भवेत् ।
कार्यान्तरस्वीकरणं ज्ञेयः स परिवर्तकः ।। २६७।।
४. परिवर्तक- पूर्वोक्त कार्य के परित्याग के कारण दूसरे कार्य को स्वीकार करने को परिवर्तक जानना चाहिए।।२६७॥
यथोत्तररामचरिते पञ्चमाङ्के (१६)कुमारो- (अन्योऽन्यं प्रति) अहो प्रियदर्शनः कुमारः। (सस्नेहानुरागं निर्वण्य)
यदृच्छासंवादः किमु गुणगणानामतिशयः पुराणो वा जन्मान्तरनिबिडबन्धः परिचयः । निजो वा सम्बन्धः किमु विधिवशात् कोऽप्यविदितो
ममैतस्मिन् दृष्टे हृदयमवधानं रचयति ।।171।।
अत्र लवस्य चन्द्रकेतोः परस्पराकारावशेषसन्दर्शनेन रणसरम्भौद्धत्यपरि-हारेण विनयार्जवस्वीकारकथनात् परिवर्तकः।।
जैसे उत्तररामचरित के ५.१६ में
दोनों कुमार- (एक दूसरे को) अहो! कुमार प्रियदर्शन हैं। (स्नेह और अनुराग के साथ देखकर)
इनको देखने पर भाग्य-समागम वा शौर्य आदि गुणों का उत्कर्ष अथवा जन्मान्तरीण दृढ़ आरुढ प्राचीन परिचय, किंवा भाग्यवश अज्ञात कोई निजी सम्बन्ध मेरे चित्त को एकाग्र कर रहा है।।171।।
यहाँ लव और चन्द्रकेतु का परस्पर सम्पूर्ण आकार को देखने से युद्ध प्रारम्भ करने की उद्धत्तता को छोड़ देने के कारण विनय की सरलता को स्वीकार करने का कथन होने से