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प्रथमो विलासः
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जैसे (सरस्वती-कण्ठाभरण में भी उद्धृत)
अहिल्या और इन्द्र का शब्द (ध्वनि) से रहित, अनेक प्रकार की (काम- विषयक) कलाओं के मिश्रण से भड़काया हुआ, हाथों के स्पर्श के कार्य से शय्या के अन्तिम भाग तक हटे हुए दुपट्टे वाला, बार-बार कम्पन से बँधा हुआ और (भय के कारण) बार-बार इधर-उधर प्रेरित दृष्टि वाला वह नया सम्भोग मानो क्षणमात्र के लिए ही हुआ।।186।।
अथ नर्मस्फोट:
नर्मस्फोटस्तु भावांशैः सूचितोऽल्परसो भवेत् ।। २७७।।
अन्यैस्त्वकाण्डे सम्भोगविच्छेद इति गीयते ।
३. नर्मस्फोट- जहाँ थोड़े भाव (भावांश) से अल्प रस सूचित होता है वह नर्मस्फोट कहलाता है।।२७७उ.।।
अन्य आचार्यों के अनुसार अप्रत्याशित (एकाएक) सम्भोग का विच्छेद हो जाना (नर्मस्फोट) कहलाता है।।२७८पू.।।
आद्यो यथा (अभिज्ञानशाकुन्तले २/२)
स्निग्धं वीक्षितमन्यतोऽपि नयने यत्प्रेरयन्त्या तया यातं यच्च नितम्बयोर्गुरुतया मन्दं विलासादिव । मा गा इत्युपरुद्धया यदपि सा सासूयमुक्ता सखी
सर्वं तत् किल मत्परायणमहो कामी स्वतां पश्यति ।।187।। अत्र सर्व किलेत्यनिश्चयेनानुरागस्य स्वल्पमात्रसूचनया नर्मस्फोटत्वम् । आदिवाला (भावांश से सूचित जैसे अभिज्ञानशाकुन्तल २/२ में)
(दुष्यन्त विदूषक से कहता है-) दूसरी ओर भी आँखे लगाती हुई उस (शकुन्तला) ने जो स्नेह-पूर्वक निहारा, नितम्बों के भारीपन के कारण वह विलास से जो धीरे-धीरे चली, “मत जाओ' यह कहकर रोकी जाने पर उसने जो झिड़ककर सहेली से वह बात कहा, वह सब, लगता है, मुझे उद्देश्य करके हुआ था। आश्चर्य की बात है कि काम (परविषयक व्यापार में भी) आत्मीयता देखता है।।187।।
यहाँ सब कुछ (सर्वं किल) इस अनिश्चय से अनुराग के स्वल्पमात्र सूचित होने से नर्मस्फोट है।
द्वितीयो यथा रत्नावल्याम् (२/१९)
प्राप्तां कथमपि दैवात् कण्ठमनीतैव सा प्रकटरागा ।
रत्नावलीव कान्ता मम हस्ताद् भ्रंशिता भवता ।।188 ।।
अत्र विदूषकवाक्यसूचितदेवीशङ्काविसृष्टसागरिकाहस्तेन राज्ञाकाण्डे त्वया सम्भोगभङ्गः कृतः इत्युक्तत्वाद् नर्मस्फोटः। रसा.११