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प्रथमो विलासः
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ग्रहण कर ले रही है, (अत: उसे) रोका जाय (अर्थात् शिङ्गभूपाल के दान की तुलना में कामधेनु भी तुच्छ है)तथा हमारे (शिङ्गभूपाल के) चिन्तामणि (नामक मणि) से निर्मित चबूतरों से उच्चैश्रवा (नामक इन्द्र का हाथी) झुक (न्यून) हो जा रहा है, (अत: उसे) दूर से ही ले जाइए। इस प्रकार प्रत्येक रास्तों के चौराहों पर बैठे हुए ब्राह्मण लोग कहते हैं।।३१३॥
रक्षायां राक्षसारिं प्रबलविमतविद्रावणे वीरभद्रं कारुण्ये रामभद्रं भुजबलविभवारोहणे रौहिणेयम् । पाञ्चालं चञ्चलाक्षीपरिचरणविधौ पूर्णचन्द्र प्रसादे कन्दर्प रूपदर्प तुलयति नितरां शिङ्गभूपालचन्द्रः ।। ३१४।। ।।इति श्रीमदान्त्रमण्डलाधीश्वरप्रतिगण्डभैरवश्रामदनपोतनरेन्द्रनन्दन भुजबलभीमश्रीशिङ्गभूपालविरचिते रसार्णवसुधाकरनाम्नि
नाट्यालङ्कारे रञ्जकोल्लासो नाम प्रथमो विलासः।। जो शिङ्गभूपाल रक्षा करने में राक्षसों के शत्रु विष्णु, प्रबल शत्रुओं को खदेड़ने में वीरभद्र, करुणा में रामभद्र, भुजाओं के बल वाले उत्कर्ष में बलराम, चञ्चल नेत्रों वाली (रमणियों) के सेवा कार्य द्वारा (मुखरूपी) पूर्ण चन्द्रमा को प्रसन्न करने में पाञ्चाल (देश के लोगों), (अपने) रूप पर दर्प करने वालों में कामदेव के समान हैं।।३१४।। ।आन्य देश के भीषणयुद्ध में प्रचण्डभैरव की कान्ति वाले राजा श्री अनपोतराज
को आनन्दित करने वाले (पुत्र), भुजाओं के बल में भीम के समान श्रीशिङ्गभूपाल द्वारा विरचित रसार्णवसुधाकर नामक नाट्यालङ्कार
में रअकोल्लास नामक प्रथम विलास समाप्त हुआ ।।