________________
प्रथमो विलासः
|१२३]
तथा चकैशिकीत्यनुवृतौ रुद्रटः (शृङ्गारतिलके ३.५४)
शृङ्गारहास्यकरुणरसातिशयसिद्धये ।
एषा वृत्तिः प्रयत्नेन प्रयोज्या रसकोविदः ।।इति।। जैसा कि
कैशिकी वृत्ति के प्रयोग के विषय में (शृङ्गारतिलक में) रुद्रट का मतशृङ्गार, हास्य तथा करुण (रस) की अतिशयता की सिद्धि के लिए रस के विशेषज्ञों को इस कैशिकी वृत्ति का प्रयोग सप्रयत्न करना चाहिए।
विचारसुन्दरो नैष मार्गो स्यादित्युदास्महे ।
शिङ्गभूपाल का मत- किन्तु यह रुद्रट का विचार समुचित नहीं है इसलिए शिङ्गभूपाल इस विषय में उदासीन है।।२९१पू.।।
कैशिकीवृत्तिभेदानां नर्मादीनां प्रकल्पनम् ।। २९१।। यतः करुणमाश्रित्य रसाभासत्ववारणम् ।
रसाभासप्रकरणे वक्ष्यते तदिदं स्फुटम् ।। २९२।।
नर्म इत्यादि कैशिकी वृत्ति के भेदों की प्रकल्पना यहाँ की गयी है क्योंकि करुण का आश्रय लेकर (इससे) रसाभास का विरोध करने वाला है। इसीलिए रसाभास के प्रसङ्ग में यह स्पष्ट रूप से कहा जाएगा।।२९१उ.-२९२।।
तत्तत्र्यायप्रवीणेन न्यायमार्गानुवर्तिना ।
दर्शितं शिङ्गभूपेन स्पष्टं वृत्तिचतुष्टयम् ।। २९३।।
इस प्रकार (नाट्य) मार्ग के प्रवीण (विशेषज्ञ) (नाट्य) मार्ग का अनुवर्तन करने वाले शिङ्गभूपाल द्वारा स्पष्ट रूप से चार वृत्तियों को दिखाया गया है।।२९३।।
अथ प्रवृत्तयः
तत्तद्देशोचिता भाषा क्रिया वेषा प्रवृत्तयः ।
३. प्रवृत्तियाँ- स्थान विशेष के लिए उचित भाषा, क्रिया, और वेष प्रवृत्तियाँ कहलाती है।।२९४उ.॥
तत्र भाषा द्विधा भाषा विभाषा चेति भेदतः ।। २९४।। भाषा- भाषा और विभाषा भेद से भाषा दो प्रकार की होती है।।२९४पू.।।
तत्र भाषा सप्तविधा प्राच्यावन्त्या च मागधी । बाल्हिका दाक्षिणात्या च शौरसेनी च मालवी ।।२९५।।