________________
प्रथमो विलासः
[११७]
उसके स्थान पर दूसरे (नायक) के प्रतिष्ठित होने पर भी यहाँ नर्मगर्भ कहते हैं।।२७९उ.-२८०पू.।।
यथा (सरस्वतीकण्ठाभरणेऽपि उद्धृतम्)
मयेन निर्मितां लङ्कां लब्ध्वा मन्दोदरीमपि । .
रेमे मूर्ती दशग्रीवलक्ष्मीमिव विभीषणः ।।190।।
अत्र रावणे विपन्ने तत्पदाभिषिक्तेन विभीषणेन मन्दोदर्यादिषु तदुचितं कर्म नियमितमिति नर्मगर्भः। केचित्वेतदारभटीभेदं संक्षिप्तमाहुः। तत्र मूलं न जानीमः।
जैसे (सरस्वतीकण्ठाभरण में उद्धृत)
मय (राक्षस) द्वारा बनायी गयी लङ्का को और (रावण की पत्नी) मन्दोदरी को प्राप्त करके विभीषण ने साक्षात् रावण की लक्ष्मी के समान (यथोचित) व्यवहार किया।।190।।
यहाँ रावण की मृत्यु हो जाने पर तथा (राजा) पद पर अभिषिक्त विभीषण द्वारा मन्दोदरी इत्यादि के प्रति उचित व्यवहार (कर्म) किया। यह नर्मगर्भ है। कुछ आचार्य इसमें संक्षिप्त नामक आरभटी के भेद को कहते हैं। उसका मूल मुझे पता नहीं है।
अथारभटी
मायेन्द्रजालप्रचुरां चित्रयुद्धक्रियामयीम् ।। २८०।।
छेद्यैर्भेद्यैः प्लुतैः युक्ता वृत्तिमारभटीं विदुः ।
४. आरभटी वृत्ति- जिसमें माया, इन्द्रजाल की अधिकता है, विचित्र सङ्गाम कार्य की युक्तता होती है, काटने-मारने तथा उछल कूद से युक्त होती है, वह आरभटी वृत्ति कहलाती है।।२८०उ.-२८१पू.॥
अङ्गान्यस्यास्तु चत्वारि संक्षिप्तिरवपातनम् ।। २८१।।
वस्तूत्थापनसम्फेटाविति पूर्वे बभाषिरे ।
आरभटीवृत्ति के अङ्ग- पूर्ववर्ती आचार्यों ने इसके चार अङ्गों को बतलाया है(अ) संक्षिप्ति, (आ) अवपातन, (इ) वस्तूस्थापन और (ई) सम्फेट।
तत्र संक्षिप्तिः
संक्षिप्तवस्तुविषया या माया शिल्पयोजिता ।। २८२।।
सा सक्षिप्तिरिति प्रोक्ता भरतेन महात्मना ।
(अ) संक्षिप्ति- जो माया काव्यकला के द्वारा संयोजित संक्षिप्त विषयवस्तु वाली होती है, उसे महात्मा भरत ने संक्षिप्ति कहा है।।२८२उ.-२८३पू.।।
यथानघराघवे (५.७)
नीतो दूरं कनकहरिणच्छद्मना रामभद्रः पश्चादेनं द्रुतमनुसरत्येष वत्सः कनिष्ठः ।