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रसार्णवसुधाकरः
धैर्यगाम्भीर्ये तु नायकवर्णनावसर एवोक्ते ।
४. धैर्य और ५. गम्भीरता का उदाहरण नायक के गुण निरूपण के अवसर पर देख लेना चाहिए।
अथ ललितम्
शृङ्गारप्रचुरा चेष्टा यत्र तल्ललितं भवेत् ।। २१८।।
६. लालित्य- जिसमें शृङ्गार की अधिकता वाली चेष्टा होती है, वह लालित्य है।।२१८उ.।।
यथा (हनुमन्नाटके १.१९)
कपोले जानक्याः करिकलभदन्तद्युतिमुषि स्मरस्मेरं गण्डोड्डमरपुलकं वक्त्रकमलम् । मुहुः पश्यञ्शृण्वम् रजनिचरसेनाकलकलं
जटाजूटग्रन्थिं द्रढयति रघूणां परिवृढः ।।134।। जैसे (हनुमन्नाटक १.१९ में)
रंगभूमि में एक तरफ अनमनी सी बैठी जानकी के हस्तिदन्तवत्स्वच्छ कपोलगण्डस्थल में अपने स्मरविकसित एवं पुलक-पूर्ण मुख-कमल के प्रतिबिम्ब को बार-बार देखते हुए तथा उस
ओर राक्षसों की कल-कल ध्वनि सुनते हुए रघुवंश श्रेष्ठ राम अपने जटाजूट की गाँठ ठीक करने लगे-धनुष आरोपण के लिए उद्यत हुए।।134।।
औदार्यतेजसोरपि नायकप्रसङ्ग एव लक्षणोदाहरणे प्रोक्ते ।
७. औदार्य और ८. तेज का लक्षण और उदाहरण नायक निरूपण के प्रसङ्ग कहा जा चुका है।
अत्र गाम्भीर्यधैर्ये द्वे चित्तजे गात्रजाः परे ।
एके साधारणानेतान्मेमिरे चित्तगात्रयोः ।। २१९।।
यहाँ गाम्भीर्य और धैर्य ये दोनों चित्तज भाव हैं। अन्य (कुछ आचार्य) इसको गात्रज-भाव तथा कुछ लोग इनको चित्त और गात्र दोनों से सम्बन्धित मानते हैं।।२१९॥
अथ वागारम्भाः
आलापश्च विलापश्च संल्लापश्च प्रलापकः । अनुलापापलापौ च सन्देशश्चातिदेशकः ।।२२०।। निर्देशश्चोपदेशश्चापदेशो व्यपदेशकः । एवं द्वादशधा प्रोक्ता वागारम्भा विचक्षणः ।।२२१।।