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________________ [८६] रसार्णवसुधाकरः धैर्यगाम्भीर्ये तु नायकवर्णनावसर एवोक्ते । ४. धैर्य और ५. गम्भीरता का उदाहरण नायक के गुण निरूपण के अवसर पर देख लेना चाहिए। अथ ललितम् शृङ्गारप्रचुरा चेष्टा यत्र तल्ललितं भवेत् ।। २१८।। ६. लालित्य- जिसमें शृङ्गार की अधिकता वाली चेष्टा होती है, वह लालित्य है।।२१८उ.।। यथा (हनुमन्नाटके १.१९) कपोले जानक्याः करिकलभदन्तद्युतिमुषि स्मरस्मेरं गण्डोड्डमरपुलकं वक्त्रकमलम् । मुहुः पश्यञ्शृण्वम् रजनिचरसेनाकलकलं जटाजूटग्रन्थिं द्रढयति रघूणां परिवृढः ।।134।। जैसे (हनुमन्नाटक १.१९ में) रंगभूमि में एक तरफ अनमनी सी बैठी जानकी के हस्तिदन्तवत्स्वच्छ कपोलगण्डस्थल में अपने स्मरविकसित एवं पुलक-पूर्ण मुख-कमल के प्रतिबिम्ब को बार-बार देखते हुए तथा उस ओर राक्षसों की कल-कल ध्वनि सुनते हुए रघुवंश श्रेष्ठ राम अपने जटाजूट की गाँठ ठीक करने लगे-धनुष आरोपण के लिए उद्यत हुए।।134।। औदार्यतेजसोरपि नायकप्रसङ्ग एव लक्षणोदाहरणे प्रोक्ते । ७. औदार्य और ८. तेज का लक्षण और उदाहरण नायक निरूपण के प्रसङ्ग कहा जा चुका है। अत्र गाम्भीर्यधैर्ये द्वे चित्तजे गात्रजाः परे । एके साधारणानेतान्मेमिरे चित्तगात्रयोः ।। २१९।। यहाँ गाम्भीर्य और धैर्य ये दोनों चित्तज भाव हैं। अन्य (कुछ आचार्य) इसको गात्रज-भाव तथा कुछ लोग इनको चित्त और गात्र दोनों से सम्बन्धित मानते हैं।।२१९॥ अथ वागारम्भाः आलापश्च विलापश्च संल्लापश्च प्रलापकः । अनुलापापलापौ च सन्देशश्चातिदेशकः ।।२२०।। निर्देशश्चोपदेशश्चापदेशो व्यपदेशकः । एवं द्वादशधा प्रोक्ता वागारम्भा विचक्षणः ।।२२१।।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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