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प्रथमो विलासः
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विमर्श- यहाँ 'तिमं तिमं' 'ठिनौ-ठिनौ' और 'भसा भसा' का कथन निरर्थक हुआ है अत: प्रलाप है।
अथानुलापः
अनुलापो मुहुर्वचः। ५. अनुलाप- बार-बार कहना अनुलाप कहलाता है।।२२३पू.।। यधा
तमस्तमो नहि नहि मेचका कचाः शशी शशी नहि नहि दृक्सुखं मुखम् । लते लते नहि नहि सुन्दरौ करौ
नभो नभो नहि नहि चारु मध्यमम् ।।140।। जैसे
यह अन्धकार है, अन्धकार है, नहीं-नहीं ये तो धुंघराले बाल हैं। यह चन्द्रमा है, चन्द्रमा है, नहीं-नहीं यह तो मुख है। ये लताएं हैं, ये लताएँ है, नहीं नहीं ये तो दोनों सुन्दर भुजाएं है। यह आकाश है, आकाश है, नहीं-नहीं यह तो कमर है।।140।।
विमर्श- यहाँ 'तमः-तमः' इत्यादि का दो-दो बार कथन अनुलाप है। अथापलाप:
अपलापस्तु पूर्वोक्तस्यान्यथायोजनं भवेत् ।। २२३।।
६. अपलाप- पूर्वोक्त कथन का दूसरी बात से जोड़ना (अन्यथा- योजन) अपलाप होता है।।२२३उ.॥
यथा
त्वं रुक्मिणी त्वं खलु सत्यभामा किमत्र गोत्रस्खलनं ममेति । प्रसादयन् व्याजपदेन राधां
पुनातु देवः पुरुषोत्तमो वः ।।141 ।। जैसे
तुम रुक्मिणी हो, अरे नहीं। तुम तो सत्यभामा हो! अरे यह क्या मेरे गोत्र (नाम लेने) में स्खलन (भूल) हो गया है। इस प्रकार व्याजपद से (बहाना बना कर ) राधा को प्रसन करते हुए देव पुरुषोत्तम (श्री कृष्ण) तुम्हारी रक्षा करें।।141 ।।
___ अत्र नायिकावाचकयोः रुक्मिणीसत्यभामापदयोः पूर्वोक्तयोः सुवर्णक्वसत्यकोपत्वलक्षणेनार्थेन योजनादपलापः।