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प्रथमो विलासः
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यथा (रघुवंशे १८.४)
पौत्रः कुशस्यापि कुशेशयाक्षः ससागरां सागरधीरचेताः ।
एकातपत्रां भुवमेकवीरः पुरार्गलादीर्घभुजो बुभोज ।।1।।
उन (गुणों) में महाभाग्यशालिता- सर्वोत्कृष्ट राज्यसम्पन्न होना महाभाग्यत्व कहलाता है।।६४पू.॥
जैसे (रघुवंश १८.४ में)__ समुद्र के समान गम्भीर चित्त वाले और नगर के प्रधान फाटक की अर्गला के समान बड़ी-बड़ी बाहु वाले, अद्वितीय वीर कुश के पौत्र निषध ने भी सागर तक फैली हुई एकछत्र पृथ्वी का भोग किया।।1।।
अथौदार्यम्
यद् विश्राणनशीलत्वं तदौदार्य बुधा विदुः।।६४।। यथा (रघुवंशे ५/३१)
जनस्य साकेतनिवासिनस्तौ द्वावप्यभूतामभिनन्द्यसत्वौ । गुरुप्रदेयाधिकनिस्पृहोऽर्थी
नृपोऽर्थिकामादधिकप्रदश्च ।।2। उदारता- सर्वस्व दे. देने की भावना को आचार्यों ने उदारता कहा है।।६४ उ.।। जैसे (रघुवंश ५.३१ में)
उस समय अयोध्या निवासी याचक कौत्स और दाता रघु-दोनों की सराहना करने लगे। इधर तो कौत्स गुरुदक्षिणा से अधिक एक कौड़ी भी लेना नहीं चाहते थे और उधर रघु वह समस्त धन कौत्स को देने के लिए इच्छुक थे।।2।।
अथ स्थैर्यम्___ व्यापार फलपर्यन्तं स्थैर्यमाहुर्मनीषिणः । यथा (रघुवंशे ८.२२)-
- न नवः प्रभुराफलोदयात् स्थिरकर्मा विरराम कर्मणः ।
न च योगविधेर्नवेतरः स्थिरधीराः परमार्थदर्शनात् ।।3।।
स्थिरता- फलप्राप्तिपर्यन्त कार्य करते रहना आचार्यों द्वारा स्थिरता कहा गया है।।६५ पू.॥