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रसार्णवसुधाकरः
जलदारवस्य यथा-- -- -- - -
मनस्विनीनां मनसोऽपि मानस्तथापनीतो घनगर्जितेन । यथोपगूढाः प्रथितागसोऽपि
क्षणं विदग्धाः कुपिता इवासन् ।।97 ।। अत्र जलदारवग्रहणं विधुदादीनामप्युपलक्षणम् । मेघगर्जन से जैसे
उदार मन वाली तरुणियों के मन का मान बादलों की गर्जना से उसी प्रकार दूर हो गया जैसे- (परनायिका के साथ समागम करने से) अपराधी नायक की कुपिता चतुर (रमणियाँ) छिपकर (दूर हो) जाती हैं।।97 ।। .
यहाँ जलदारव (मेघगर्जन) विद्युत चमकने इत्यादि का भी उपलक्षण है। विद्युतो यथा
वर्षासु तासु क्षणरुक्प्रकाशात् वस्ता रमा शाङ्गिणमालिलिङ्ग । विद्युच्च सा वीक्ष्य तदङ्गशोभां
ह्रीणेव तूर्णं जलदं जगाहे ।।98।। विद्युत् का जैसे
उस बरसात में विद्युत के प्रकाश से भयभीत लक्ष्मी ने शार्ङ्गधारी (नारायण) का आलिङ्गन किया और वह विद्युत् उस (लक्ष्मी) के शरीर की शोभा को देख कर लज्जा के समान बादलों में छिप गयी।।98।।
प्रासादगर्भस्य यथा
गोपानसीसंश्रितबर्हिणेषु कपोलशिञानकपोतकेषु ।
प्रासादगर्भेषु रमाद्वितीयो रेमे पयोदानिलदुर्गमेषु ।।११।। प्रासादगर्भ का जैसे
(उद्यानों की) बावलियों पर आश्रय लिए हुए मयूरों वाले तथा बुजों पर घोसलों में रहने वाले कबूतरों से युक्त महल के कोष्ठों के गर्भ में रमा के साथ विष्णु ने रमण किया।।११।।
सङ्गीतस्य यथा
माधवो मधुरमाधवीलतामण्डपे पटुरटन्मधुव्रते । सञ्जगौ श्रवणचारु गोपिकामानमीनबडिशेन वेणुना ।।100 ।।