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रसार्णवसुधाकरः
विहृतं चेति विज्ञेया योषितां दश गात्रजा ।
२. गात्रज अनुभाव - १. लीला, २ . विलास, ३. विच्छित्ति, ४. विभ्रम, ५. किलकिञ्चित, ६ . मोट्टायित, ७. कुट्टमित, ८. विब्बोक, ९. ललित और १०. विहृत - ये स्त्रियों के दश गात्रज अनुभाव हैं । । १९९-२०० पू.।।
तत्र लीला
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प्रियानुकरणं यत्तु मधुरालापपूर्वकैः ।। २०० ।। चेष्टितैर्गतिभिर्वा स्यात् सा लीला निगद्यते ।
१. लीला - मधुर आलाप, चेष्टा अथवा गति द्वारा जो प्रिय का अनुकरण किया। जाता है वह लीला कहलाता है ।। २००३ - २०१ पू. ।।
यथा
दुष्टकालीय सर्पोऽत्र कृष्णोऽहमिति चापरा ।
बाहुमास्फोट्य कृष्णस्य लीलासर्वस्वमाददे ।।113 ।।
जैसे
'यहाँ यह दूसरी (गोपिका) दुष्ट कालीय नामक सर्प है और (यह) मैं कृष्ण हूँ' इस प्रकार बाहों को फैला कर (राधिका ने कृष्ण की) सभी लीलाओं को किया । । 113 ।।
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अथ विलासः
प्रियसम्प्राप्तिसमये भ्रूनेत्राननकर्मणाम् ।। २०१ ।। तात्कालिको विशेषो यः स विलास इतीरितः ।
२. विलास - प्रियतम की प्राप्ति के समय भौंहों, नेत्रों और मुख के कार्यों में जो | तात्कालिक वैशिष्ट्य होता है वह विलास कहलाता है ।। २०१उ. -२०२पू.।।
यथा
बाला सखीतनुलतान्तरिता भवन्तमालोक्य मुग्धमधुरैरलसैरपाङ्गैः । शिङ्गक्षमारमणः ! चित्तजमोहनास्त्र
र्लक्ष्मीरभित्तिलिखितेव चिरं चकास्ति ।।114।।
शिङ्गभूमि पर रमण करने वाले (शिङ्गभूपाल ) ! (अपनी) सखी की शरीर रूपी लता
में छिपी हुई तरुणी आप को देखकर जड़भूत, आकर्षक तथा अलसाए हुए नेत्र के कोनों के कारण दीवार पर अचित्रित चित्तज (चित्त से उत्पन्न ) सम्मोहक अस्त्रों से युक्त लक्ष्मी की भाँति सुशोभित हो रही है।।114 ।।