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रसार्णवसुधाकरः
अथ किलकिञ्चितम् -
शोकरोषाश्रुहर्षादेः सङ्करः किलिकिञ्चितम् ।
५. किलकिञ्चित - शोक, रोष, अश्रुपात, हर्ष इत्यादि का मेल किलकिञ्चित कहलाता है।।२०४पू.।
यथा
दत्तं श्रुतं द्यूतपणं सखीभ्यो विवक्षति प्रेयसि कुञ्चितभ्रूः ।
कण्ठं कराभ्यामवलम्ब्य तस्य मुर्ख पिधत्ते स्म कपोलकेन ।।117।।
जैसे
जुए के पासे पर दी गयी हूँ, इस प्रकार सखियों द्वारा कहे गये वचन को सुनने पर प्रियतमा की कुछ कहने की इच्छा होने पर ( अपनी ) भौहों को सिकोड़ कर और उस (जुवाड़ी नायक के) गले का सहारा लेकर ( उसके ) मुख को अपने गालों से चिपका लिया ।।117 ।।
यथा वा (दशरूपकेऽप्युद्घृतम्) -
रतिक्रीडाद्यूते कथमपि समासाद्य समयं
मया लब्धे तस्याः क्वणितकलकण्ठार्धमधरे । कृतभ्रूभङ्गासौ
प्रकटितविलक्षार्धरुदितं
स्मितक्रोधोद्भ्रान्तं पुनरपि निदध्यान्मयि मुखम् ।।118 ।।
अथवा जैसे (दशरूपक में भी उद्घृत) -
रतिक्रीडा के द्यूत में किसी प्रकार दाव (समय) पाकर मैनें उसके अधर को पा लिया जबकि उसका कण्ठ अस्फुट और मधुर ध्वनि कर रहा था। फिर भौहें टेढ़ी करती हुई और लज्जा प्रकट करती हुई उस (नायिका) ने अपना मुख कुछ रोदन, मुस्कराहट तथा क्रोध से युक्त कर लिया। अच्छा हो कि वह फिर मेरे प्रति ऐसा मुख करे ।।118 ।।
अथ मोट्टायितम्
स्वाभिलाषप्रकटनं मोट्टायितमितीरितम् ।। २०४।।
६. मोट्टायित - अपनी इच्छा को प्रकट करना मोट्टायित कहलाता है । । २०४उ. ।। यथा ममैव
आकर्ण्य
कर्णयुगलैकरसायनानि
तन्व्या प्रियस्य गदितानि सखीकथासु । आलोलकङ्कणझणत्करणाभिरामा
मावेल्लिते भुजलते ललिताङ्गभङ्गम् ।।119।।