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प्रथमो विलासः
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सङ्गीत का जैसे
माधव (श्रीकृष्ण) भ्रमरों के गुञ्जार से पूरित रमणीय माधवी लता वाले मण्डप (झुरमुट) में सुनने में मधुर तथा गोपिकाओं के मानरूपी मछली को फसाने के लिए काँटे का कार्य करने वाली बाँसुरी से जुड़ गये (अर्थात् बाँसुरी बजाने लगे।।100 ।।
क्रीडाद्रेर्यथा (मेघदते १.२५)
नीचैराख्यं गिरिमधिवसेस्तत्र विश्रामहेतोस्त्वत्सम्पर्कात् पुलकितमिव प्रौढपुष्पैः कदम्बैः । यः पण्यस्त्रीरतिपरिमलोदगारिभिर्नागराणा
मुद्दामानि प्रथयति शिलावेश्मभिर्यौवनानि ।।101 ।। क्रीड़ाद्रि का जैसे (मेघदूत में १.२५)
वहाँ विदिशा के समीप विश्राम के लिए पूर्ण विकसित फूलों वाले कदम्ब-वृक्षों से तुम्हारे सम्बन्ध के कारण रोमाञ्चित 'नीच' नामक पर्वत पर ठहरना, जो पर्वत वेश्याओं की सुरतक्रीडाओं में (प्रयुक्त) सुगन्ध को फैलाने वाले शिलागृहों से नागरिकों के उद्दाम यौवन को प्रकट कर रहा है।।101 ।।
सरितो यथा (रघुवंशे के १६.६४)
अथोर्मिमालोन्मदराजहंसे रोधोलतापुष्पवहे सरय्वाः ।
विहर्तुमिच्छा वनितासखस्य तस्याम्भसि ग्रीष्मसुखे बभूव ।।102।। इत्याद्यन्यदप्युदाहार्यम् । सरित् का जैसे (रघुवंश के १६.५४ में)
इसके बाद एक दिन राजा शुक की इच्छा हुई कि लहरों के लहराने से चञ्जल एवं मतवाले बने हुए हंस वाले तटवर्ती लताओं के पुष्पों को बहाने वाले, ग्रीष्म-काल से सुखप्रद सरयू के जल में अपनी रानियों के साथ विहार करें।।102।।
इत्यादि अन्य भी उदाहरण दर्शनीय है। अथानुभावाः
भावं मनोगतं साक्षात् स्वहेतुं व्यञ्जयन्ति ये ।
तेऽनुभावा इति ख्याता भ्रूविक्षेपस्मितादयः ।।१९०।।
अनुभाव- वे मनोगत भाव जो साक्षात् रूप से अपने हेतु (प्रयोजन) को व्यञ्जित करते हैं वे भ्रूविक्षेप, स्मित इत्यादि अनुभाव कहलाते हैं।।१९०॥
ते चतुर्धा चित्तगात्रवाग्बुद्ध्यारम्भसम्भवाः ।। अनुभावों के प्रकार- वे (अनुभाव) चार प्रकार के होते हैं- १. चित्तज