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प्रथमो विलासः
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भ्रमरों के अपूर्व मन्त्र के समान मनोहर गुञ्जार से युक्त (वसन्त की) मधुर कान्ति मानशालिनी (युवती) लोगों को मान-धारण से विरक्त करने के लिए आचरण करती है।।93।।
लतामण्डपस्य यथा
एषा पूगवती प्रफुल्लकुहलिः पर्यन्तचूतद्रुमा तन्मध्येऽपि सरोवरं निधुवनान्तानन्दमन्दानिलम् । तत्तीरे कदलीगृहं विलसितं तस्यान्तरे मल्लिका
वल्लीमण्डपमत्र सा सुनयना त्वन्मार्गमेवेक्षते ।।94।। लतामण्डप का जैसे
यह विकसित कोढ़ियों (कलियों) वाली सुपाड़ी है। यहाँ तक फैले हुए ये आम के वृक्ष हैं। उसके मध्य में सम्भोग के अन्त में आनन्द देने वाले मन्द वायु से युक्त सरोवर है। उस सरोवर के किनारे कदलीगृह शोभायमान है। उस (कदलीगृह) के भीतर चमेली की लताओं वाला मण्डप है। वहीं वह सुन्दर नेत्रों वाली रमणी तुम्हारा रास्ता देख रही है।।94।।
भूगेहस्य यथा
कालागरूद्गारसुगन्धिगन्धधूपाधिवासाश्रयभूगृहेषु न तत्रसुर्माघसमीरणेभ्यः
श्यामाकुचोष्माश्रयिणः पुमांसः ।।95 ।। भूगेह का जैसे
काले अगरु से निकलने वाली सुगन्ध से सुगन्धित गन्धद्रव्यों से युक्त भूगृहों में षोडशी रमणी के स्तनों की ऊष्मा के आश्रित रहने वाले पुरुष माघ महीने की (शीतल) वायु के लिए सुलभ नहीं होते।।95।।
दीर्घिकाया यथा (उत्तररामचरिते १/३१)
एतस्मिन्मदकलमल्लिकाक्षपक्षव्याधूतस्फुरदुरुदण्डपुण्डरीकाः । बाष्पाम्भः परिपतनोद्गमान्तराले ...
सन्दृष्टा कुवलयिनो मया विभागाः ।।96।। दीर्घिका का जैसे (उत्तररामचरित १.३१)
यहाँ पर मद से मधुर शब्द वाले मल्लिकाक्ष नामक हंसविशेषों के पंखों से कम्पित और शोभित बड़े नालदण्डों वाले श्वेतकमलों से युक्त पम्पासरोवर के प्रदेशों को मैंने आँसुओं के गिरने और निकलने के मध्य समय में देखा।।96।।---
रसा.८