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रसार्णवसुधाकरः
सनिवेश्य सचिवेष्वतः परं
स्त्रीविधेयनवयौवनोऽभवत् ।।24।।
२. धीरललित (नायक)- धीरललित (नायक) निश्चिन्त, युवा तथा स्त्री के वश में रहने वाला होता है।।७६पू.॥
जैसे (रघुवंश १९.४ में)
पिता राजा सुदर्शन के द्वारा पहले ही शत्रुओं को बाहुबल से पराजित करके निष्कण्टक किये गये राज्य को प्राप्त करके अग्निवर्ण कामुक हो गये। कुछ वर्षों तक तो उन्होंने स्वयं कुलोचित अधिकार (प्रजा-पालन कर्म) को किया फिर मन्त्रियों पर राज्य का भार डालकर स्त्रियों में आसक्त होकर यौवन का रस लेने लगे।।24।।
यहाँ निश्चिन्तता, युवावस्था तथा स्त्री के वशीभूत होने के कारण अग्निवर्ण धीरललित नायक है।
अथ धीरशान्तः
समप्रकृतिकः क्लेशसहिष्णुश्च विवेचकः ।।७६।। ललितादिगुणोपेतो विप्रो वा सचिवो वणिक् ।
धीरशान्तश्चारुदत्तमाधवादिरुदीरितः ॥७७।। यथा (मालतीमाधवे ५.५)
कुवलयदलश्यामोऽप्यङ्गं दधत् परिधूसरं सुललितपदन्यासः श्रीमान् मृगाङ्कनिभाननः । हरति विनयं वामो यस्य प्रकाशितसाहसः
प्रविगलदसृक्पङ्कः पाणिर्ललनरजाङ्गलः ।।25।।
३. धीरप्रशान्त (नायक)- धीरप्रशान्त नायक ब्राह्मण, सचिव (मन्त्री) अथवा वणिक् होता है जो समान स्वभाव वाला, क्लेश सहन करने की क्षमता वाला, विवेचना करने वाला तथा ललित आदि गुणों से युक्त होता है।।७६उ.-७७पू.।।
___(मृच्छकटिक का नायक) चारुदत्त (मालतीमाधव का नायक) माधव इत्यादि धीरप्रशान्त (नायक) कहे गये हैं।।७७उ.॥
जैसे (मालतीमाधव ५.५ में)
(माधव का वर्णन करते हुए कपालकुण्डला कहती है)- नीलकमल के पत्ते के समान श्यामवर्ण वाला भी धूसरवर्ण वाले अङ्ग को धारण करता हुआ सुन्दर और विकृत शरीरचालन से युक्त, शोभासम्पन्न होकर चन्द्रतुल्य मुख से भूषित है। मनुष्य-मांस जिसके बाँये हाथ में है और जिससे गाढ़ रक्त (खून) टपक रहा है- इस प्रकार से साहस को प्रकाशित करने वाला जिसका