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प्रथमो विलासः
यथा आनन्दकोशप्रहसने
क्षामैश्च गण्डफलकैर्विरलैश्च दन्तैलम्बैः कुचैर्गतकथाप्रसङ्गैः । अङ्गैरयत्नशिथिलैश्च सदाप्यसेवा
भर्तुः पणानभिलषन्त्यहहालसाङ्ग्यः ।।75।। जैसे आनन्दकोशप्रहसन में
क्षीण (दुर्बल) कपोलमण्डलों, विरल दाँतों, लम्बे स्तनों, कथा-प्रसङ्ग में प्रेम, प्रयत्न के बिना ही शिथिल अङ्गों के कारण पति से असेवित (समागम से रहित) तथा अलसाये हुए अङ्गों वाली (वेश्याएँ) धन वालों लोगों की अभिलाषा रखती है, यह आश्चर्य है।।75 ।।
तत्र शृङ्गारयोग्यत्वं रतालादनकारणम् ।
आद्यद्वितीययोरेव न तृतीयचतुर्थयोः ।।१७९।।
शृङ्गार-योग्य यौवन- उन (यौवनों) में आदि वाले प्रथम और द्वितीय यौवन में ही रतिक्रिया में आह्लाद (प्रसन्नता) का कारण होने से शृङ्गार (रस) की योग्यता होती है, तृतीय और चतुर्थ नहीं।।१७९॥ ।
अथ रूपम्
अङ्गान्यभूषितान्येव प्रक्षेपाबैर्विभषणैः ।
येन भूषितवद् भाति तद्रूपमिति कथ्यते ।।१८०।।
२. रूप- (उतार दिए गए आभूषणों के कारण) आभूषणरहित भी अङ्ग जिस कारण से आभूषित (अलङ्कृत) के समान सुशोभित होते हैं, उसे रूप कहा जाता है।।१८०॥
यथा
स्नातुं विमुक्ताभरणा विमाल्या भूयोऽसहा भूषयितुं शरीरम् । अगाद् बहिः कचिदुदाररूपा
यां वीक्ष्य लज्जा दधिरे सभूषाः ।।76।। जैसे
स्नान करने के लिए आभूषणों को उतार देने वाली तथा मालाओं से रहित शरीर वाली (स्नान के पश्चात्) पुनः शरीर को सजाने में असमर्थ कोई अनुपम रूप वाली (तरुणी) (जल से) बाहर निकली जिस को देखकर आभूषित (आभूषण इत्यादि से सुसज्जित तरुणियाँ) लजा गयीं।।76।।