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प्रथमो विलासः
हृदय में सन्ताप, कँपकँपी, अङ्गों में क्लान्ति, बेचैनी, आँसू बहाना, अपनी विषम दशा का कथन इत्यादि इसकी चेष्टाएँ होती है ।। १२८उ. - १३०पू. ।।
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जैसे शिङ्गभूपाल का ही
(अन्य स्त्री के साथ सम्भोग न करने के कारण) अपराध-रहित प्रियतम के थोड़ासा देर कर देने पर उत्सुक प्रियतमा मधुर चन्दन को अथवा अशोकवृक्ष को देखने में असमर्थ हो जाती है। हाथों से निकल कर गिरे हुए कङ्गन को भी नहीं जान पाती। कोयल की कूजन को सुनकर आँसू बहाने लगती है और काँपने लगती है ।। अथ खण्डिता
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यथा ममैव
प्रभाते
उल्लङ्घ्य समयं यस्याः प्रेयानन्योपभोगवान् ।। १३० ।। भोगक्ष्माङ्कितः प्रातरागच्छेत् सा हि खण्डिता । अस्यास्तु चिन्ता निःश्वासस्तूष्णीम्भावोऽश्रुमोचनम् ।। १३१ ।। खेदभ्रान्त्यस्फुटालापा इत्याद्या विक्रिया मताः ।
प्राणेशं नवमदनमुद्राङ्किततनुं
वघूर्दृष्ट्वा रोषात् किमपि कुटिलं जल्पति मुहुः । मुहुर्धत्ते चिन्तां मुहुरपि परिभ्राम्यति मुहुर्विधत्ते निःश्वासं मुहुरपि च बाष्पं विसृजति ।163।।
(४) खण्डिता - जिस (नायिका) का प्रियतम ( रात में) दूसरी (नायिका) का उपभोग करके तथा (दूसरी नायिका के साथ) सम्भोग करने के चिह्नों से युक्त हुआ प्रात:काल (वापस) आता है, वह (नायिका) खण्डिता (नायिका) कहलाती है । चिन्ता, नि:श्वास (लम्बीलम्बी साँस लेना,) निस्तब्धता, आँसू बहाना, खेद, इधर-उधर घूमना (भ्रान्ति), अस्पष्ट कथन इत्यादि इसकी विक्रियाएँ कही गयी हैं ।। १३०उ. -
.-१३२पू. ॥
जैसे शिङ्गभूपाल का ही
( रात में दूसरी नायिका के साथ सम्भोग करने के कारण) नयी काममुद्रा से चिह्नित शरीर वाले पति को प्रातः काल देख कर वधू (पत्नी) रोष के कारण कुछ टेढ़ा बोलती है फिर चिन्तित हो जाती है, फिर इधर-उधर घूमने लगती है, फिर लम्बी-लम्बी श्वास लेने लगती है और फिर आँसू बहाने लगती है । 163 11
अथ कलहान्तरिता
या सखीनां पुरः पादपतितं वल्लभं रुषा ।। १३२ ।। निरस्य पश्चात्तपति- कलहान्तरिता तु सा । अस्यास्तु भ्रान्तिसन्तापौ मोहो निःश्वसितं ज्वरः ।। १३३ ।।