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रसार्णवसुधाकरः
संवेष्टिता परिजनै मोपकरणान्वितैः रसनारावमाधुर्यदीपितानङ्गवैभवा ।।१४३।। चरणाम्बुजसंलग्नमणिमञ्जीरमझुला । एषा च मृदुसंस्प : केशकण्डूयनादिभिः ।।१४४।।
प्रबोधयति तद्बोधे . प्रणयात् कुपितेक्षणा ।।
कन्याभिसारिका- प्रियतम के साथ अभिसरण के क्रम में कन्या (नायिका) को स्वकीया (नायिका) के समान समझना चाहिए।।१४०उ.।।
वेश्याभिसारिका- वेश्याभिसारिका (नायिका) तो प्रसन्न होकर वैशिक नायक के पास जाती है। अभिसारिकाएँ उत्पन्न मुस्कान से युक्त मुख वाली, मद के कारण इधर-उधर घूमती हुई आँखों वाली, सभी अङ्गों में अनुलेप लगायी हुई, विचित्र आभूषणों से युक्त, स्नेह से अङ्कुरित रोमाञ्च से स्पष्ट होते हुए कामभावना वाली, भोग की सामग्रियों से युक्त सेवकों से घिरी हुई, करधनी की ध्वनि की मधुरता से प्रज्ज्वलित अङ्गों के वैभव वाली, चरणकमल में लगी हुई मणियों के नूपुरों से शोभायमान होती हैं। ये मृदुस्पर्श से तथा बालों को खुजलाने इत्यादि से (नायक) को प्रबोधित करती है और उनके द्वारा प्रबोधित होने पर प्रणय के कारण क्रोधयुक्त नेत्रों वाली हो जाती हैं।।१४१-१४५पू.।।
यथा ममैव
मासि मघौ चन्द्रातपधवलायां निशि सखीजनापलापैः ।
मदनातुराभिसरति प्रणयवती यं स एव खलु धन्यः ।।67 ।। जैसे शिङ्गभूपाल का ही
माघ महीने में चन्द्रमा की किरणों से धवलित रात में सखी लोगों के अपलापों से युक्त कामातुरा प्रणयवती स्त्रियाँ जिससे अभिसरण करती हैं,वह निश्चित रूप से धन्य है।।66 ।।
अथ प्रेष्याभिसारिका- ----
बाहुविक्षेपलुलितस्रस्तधम्मिल्लमल्लिका ।।१४५।। चकितभूविकारादिविलासललितेक्षणा । मैरेयाविरतास्वादमदस्खलितजल्पिता ।।१४६।। प्रेष्याभियाति दयितं चेटीभिः सह गर्विता । प्रियं कङ्कणनिक्वाणमझुव्यजनवीजनैः।।१४७।।
विबोध्य निर्भर्त्सयति नासाभङ्गपुरस्सरम् ।
प्रेष्याभिसारिका- (प्रेष्याभिसारिका नायिका वह होती है जिसके) बाहुओं को (इधर-उधर) हिलाए (चलाएं) जाने से हिलते हुए जूड़ों में गुथी हुई चमेली के फूल खिसक