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प्रथमो विलासः
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प्रति) प्रिय व्यवहार करती हैं, प्रियतम के अपराध करने पर भी चुप रहती हैं, वे उत्तम नायिकाएँ होती हैं।। १५२-१५३।।
अथ मध्यमा
पुंसः स्वयं कामयते काम्यते या च तैर्वधूः । सक्रोधे क्रुध्यति मुहुः सानृतेऽनृतवादिनी ।। १५४ ।। सापकारेऽपकर्त्री स्यात् स्निग्धे स्निह्यति वल्लभे । एवमादिगुणोपेता मध्यमा सा प्रकीर्तिता ।। १५५।।
मध्यमा नायिकाएँ- पुरुष की जो स्वयं कामना करती हैं और पुरुष जिनकी कामना करता है, (पुरुष के) क्रोधित होने पर जो क्रोधित हो जाती हैं, (पुरुष के) झूठ बोलने पर जो झूठ बोलती है, (पुरुष के ) अपकार करने पर उसका अपकार करती हैं और जो स्नेह करने पर स्नेह करती हैं, इत्यादि इस प्रकार के गुणों से युक्त (नायिका) मध्यमा नायिका कहलाती है।।१५४-१५५॥
अथ नीचा
अकस्मात्कुप्यति रुषं प्रार्थितापि न मुञ्चति ।
सुरूपं वा कुरूपं वा गुणवन्तमथागुणम् ।। १५६ ।। स्थविरं तरुणं वापि या वा कामयते मुहुः । ईर्ष्याकोपविषादेषु नियता साधमास्मृता ।। १५७।। आसामुदाहरणानि लोकत एवावगन्तव्यानि ।
नीचा नायिकाएँ- जो अकस्मात् क्रोधित हो जाती हैं और प्रार्थना करने पर भी
क्रोध नहीं छोड़ती, जो सुरूप तथा कुरूप, गुणवान् तथा दोषी, वृद्ध तथा युवक की ( सम्भोग के लिए) बार-बार कामना करती हैं, जो ईर्ष्या, कोप और विषाद में नियन्त्रित (स्वशासित ) होती हैं वे अधमा (नायिकाएँ) कहलाती हैं । १५६-१५७॥
इनके उदाहरण लोक में (व्यवहार) से समझ लेना चाहिए।
स्वीया त्रयोदशविधा द्विविधा च वराङ्गना ।
वैशिकैवं षोडशधा ताश्चावस्थाभिरष्टभिः ।। १५८ । । एकैकमष्टधा तासामुत्तमादिभेदतः ।
त्र्यैविध्यमेवं सचतुरशीति स्त्रिंशती भवेत् ।। १५९।। अवस्था त्रयमेवेति केचिदाहु परस्त्रियाः ।
नायिकाओं की संख्या- इस प्रकार स्वकीया (नायिका) तेरह प्रकार की, परकीया
( नायिका, वराङ्गना) दो प्रकार की, सामान्या नायिका सोलह प्रकार की होती हैं। उनकी