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प्रथमो विलासः
त्यागी स्वभावमधुरः समदुःखसुखः शुचिः ॥ कामतन्त्रेषु निपुणः क्रुद्धानुनयकोविदः । स्फुरिते चाधरे किञ्चिद् दयिताया विरज्यति ।। उपचारपरो ह्येष उत्तमः कथ्यते बुधैः ।
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वैशिक (नायक) के भेद- वह वैशिक (नायक) ज्येष्ठ (उत्तम), मध्यम तथा नीच - भेद से तीन प्रकार का होता है ।। ८९५. ।।
उन वैशिक (नायकों) के लक्षण भावप्रकाशिका में कहे गये हैं
ज्येष्ठ (उत्तम) वैशिक नायक- जो (नायक) स्वभाव से अनासक्त होते हुए भी आसक्त की भाँति बार-बार चेष्टा करता है, त्यागी, स्वभाव से मधुर, दुःख और सुख में समान रहने वाला, पवित्र, कामक्रियाओं में निपुण, क्रुद्ध (वेश्या) को अनुनय द्वारा प्रसन्न करने में कुशल तथा जो दयिता (वेश्या) के होठों के स्फुरित होने पर रागरहित (विरक्त) हो जाता है, इस प्रकार के उपचार वाला वैशिक (नायक) आचार्यों द्वारा उत्तम कहा गया है।
व्यलीकमात्रे दृष्टेऽस्या न कुप्यति न रज्यति ॥ ददाति काले काले च भावं गृह्णाति भावतः । सर्वार्थैरपि मध्यस्थस्तामेवोपरेत् पुनः ।। दृष्टे दोषे विरज्येत स भवेन्मध्यमः पुमान् ।
मध्यम वैशिक नायक- जो इस ( नायिका = वेश्या) के मिथ्या (अथवा कुत्सित) देखने पर न तो क्रोधित होता है और न अनुराग करता है, समय-समय पर (धन) देता है; (वेश्या के) भाव से भाव ग्रहण करता है, सभी के लिए मध्यस्थता का उपचार करता है; दोष देखने पर विलग हो जाता है, वह मध्यम वैशिक (नायक) कहलाता है।
कामतन्त्रेषु निर्लज्जः कर्कशो रतिकेलिषु ॥ अविज्ञातभयामर्षः कृत्याकृत्यविमूढधीः । मूर्खः प्रसक्तभावश्च विरक्तायामपि स्त्रियाम् ।। मित्रैर्निवार्यमाणोऽपि पारुष्यं प्रापितोऽपि च । अन्यस्नेहपरावृत्तां सङ्क्रान्तरमणामपि ।। स्त्रियं कामयते यस्तु सोऽधमः परिकीर्तितः ।
अधम वैशिक नायक- जो काम विषय में निर्लज्ज, रतिक्रियाओं में कठोर, भय और क्रोध के ज्ञान से रहित, कर्तव्याकर्तव्य में जड़बुद्धि वाला, मूर्ख, मित्रों के द्वारा रोके जाने तथा बुरा भला कहने पर भी विरक्तस्त्री के प्रति आसक्तभाव वाला, दूसरे के प्रति स्नेह करने वाली तथा रमण का सङ्क्रमण की हुई भी स्त्री की कामना करता है, वह अधम वैशिक नायक कहलाता है।