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प्रथमो विलासः
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चक्रद्वयेन सदृशौ कुचकुड्मलौ च
नित्या विभति नितरां मदनस्य लक्ष्मी ।।45।। प्रोद्यत्तारुण्यशालित्व जैसे शिङ्गभूपाल का
नायिका की चञ्चल आँखे (नेत्रों के) कोरों से शोभायमान हैं, जघन (नितम्ब) किनारे के साथ मेल कर रहा है। पूर्ण खिले हुए (विकसित) दोनों स्तन दो चक्रों के समान हो गये हैं(इस प्रकार) कामदेव की शोभा (रूपी नायिका) अत्यधिक सुशोभित हो रही है।।45 ।।
मोहान्तसुरतक्षमत्वं यथा ममैव
आकीर्णधर्मजलमाकुलकेशपाशमामीलिताक्षियुगमादृतपारवश्यम् । आनन्दकन्दलितमस्तमितान्यभाव
माशास्महे किमपि चेष्टितमायताक्ष्याः ।।46।। मोहान्तसुरतक्षमत्व जैसे शिङ्गभूपाल का
इस आयताक्षी रमणी के फैले हुए पसीने, बिखरे हुए जूड़े, मुँदी हुई दोनों आँखें, समादृत परवशता, आनन्द से रोमाञ्च और तिरोहित हुए अन्य भाव वाले किसी अलौकिक चेष्टा की मैं आशा करता हूँ।।46।।
मध्या त्रिधा मानवृत्ते/राधीरोभयात्मिका ।
मध्या नायिका के भेद- मानवृत्ति के आधार पर मध्या नायिका तीन प्रकार की होती है- १. धीरा, २. अधीरा तथा ३. उभयात्मिका ॥१००पू.॥
तत्र धीरा
धीरा तु वक्ति वक्रोक्त्या सोत्प्रासं सागसं प्रियम् ।।१०।।
१. धीरा मध्या- मध्या धीरा नायिका अपराधी प्रियतम को ताने सहित (सोत्प्रास) वक्रोक्ति से कहती (फटकारती) है।।१००उ.॥
यथा ममैव
को दोषो मणिमालिका यदि भवेत्कण्ठे न किं शङ्करो धत्ते भूषणमर्धचन्द्रममलं चन्द्रे . न किं कालिमा । तत्साध्वेव कृतं कृतं भणितिभि वापराद्धं त्वया
भाग्यं द्रष्टुमनीशयैव भवतः कान्तापराद्धं मया ।।47 ।। जैसे शिङ्गभूपाल कायदि मणिमालिका (मणिनिर्मित माला) गले में नहीं है तो इसमें दोष ही क्या है(अर्थात्
रसा.६