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रसार्णवसुधाकरः
कोई दोष नहीं है)। क्या शङ्कर जी निर्मल अर्धचन्द्र को धारण नहीं करते (अर्थात् अवश्य धारण करते हैं) और उस चन्द्रमा में क्या कालिमा (दाग) नहीं है (अर्थात् अवश्य है)। तो आप ने (परनायिका से सम्भोग करके) अच्छा ही किया है, अच्छा ही किया है। (यह तो अपराध मेरा है, कि) मैं आप के इस सौभाग्य को देखने के लिए सक्षम नहीं हूँ- इस प्रकार (वक्रोक्ति से कहने वाली नायिका के प्रति) मैने (परस्त्रीगमन का) अपराध किया है।।47 ।।
अथाधीरा- ..
अधीरा परुषैर्वाक्यैः खेदयेद् वल्लभं रुषा । यथा ममैव
निश्शङ्कमागतमवेक्ष्य कृतापराधं काचिनितान्तपरुषं विनिवृत्तवक्त्रा । किं प्रार्थनाभिरधिकं सुखमेधि याहि
याहीति खिनमकरोदसकृद् ब्रुवाणा ।।48।।
२. अधीरा मध्या नायिका- अधीरा मध्या नायिका (अपराध करने वाले), प्रियतम को कठोर वाक्यों द्वारा (अपने) क्रोध से पीड़ित करती है।।१०१पू.।।
जैसे शिङ्गभूपाल का
(दूसरी नायिका के साथ सम्भोग का) अपराध करके निःशङ्क आये हुए (नायक) को 'प्रार्थना करने से क्या लाभ? अधिक सुख करो, जाओ-जाओ'- इस प्रकार बार-बार मुख से अत्यन्त कठोर वाणी को निकालती हुई किसी (नायिका) ने दुःखी कर दिया।।48।।
अथ धीराधीरा
धीराधीरा तु वक्रोक्त्या सबाष्पं वदति प्रियम् ।।१०१।।
३.धीरा अधीरा (उभयात्मिका) मध्या नायिका- धीरा-अधीरा मध्या नायिका अश्रुपूर्वक (आँसू बहाती हुई) अपराधयुक्त प्रियतम को वक्रोक्ति से कहती (उलाहना देती) है।!१०१उ.।।
यथा ममैव
आश्लेषोल्लसिताशयेन दयिताप्याा त्वया चुम्बिता चित्रोक्तिश्रवणोत्सुकेन कलिता तस्यां निशायां कथा । तद्युक्तं दिवसागमेऽत्र जडता कायं कलाहीनता
राजनित्युदिताश्रुगद्गदपदं काचिद् ब्रवीति प्रियम् ।।49 ।। जैसे शिङ्गभूपाल काहे राजन्! आलिङ्गन के आशय से कोमल (अथवा रसीली) प्रियतमा का तुमने चुम्बन