________________
[३८]
रसार्णवसुधाकरः
प्रगल्भा नायिका के भेद- मानवृत्ति के आधार पर धीरा इत्यादि भेद से प्रगल्भा नायिका भी तीन प्रकार की होती है।।१०३उ.।।
तत्र धीरप्रगल्भा
उदास्ते सुरते धीरा सावहित्था च सादरा ।
१.धीरा प्रगल्भा नायिका- धीरा प्रगल्भा नायिका सुरत-काल में आदर के साथ अपने मन के (काम-) विकार को छिपाए हुए उदासीन रहती है।।१०४पू.।।
यथा
न प्रत्युद्गमनं करोति रशनाव्यासअनादिच्छलान्नादते नवमञ्जरीमलिभयव्याजेन दत्तामपि । धत्ते दर्पणमादरेण न गिरं रूक्षाक्षरं मानिनी
चातुर्यात् पिदधाति मानमथवा व्यक्तिकरोति प्रिया ।।52।।। जैसे
(नायिका) करधनी बाँधने के बहाने से प्रत्युद्गमन नहीं करती (अतिथि के स्वागत के लिए नहीं उठती)। भ्रमरों से भय के बहाने दी गयी मञ्जरी (आम के बौर) को नहीं लेती।
आदरपूर्वक दर्पण धारण करती है (किन्तु) रूखाई से नहीं बोलती। (इस प्रकार) मान करने वाली (यह) प्रियतमा (अपनी) चतुरता से न तो मान छिपाती है और न व्यक्त करती है।। 52 ।।
अथाधीरप्रगल्भा
सन्तर्प्य निष्ठुरं रोषादधीरा ताडयेत् प्रियम् ।।१०४।।
२. अधीरा प्रगल्भा- अधीरा प्रगल्भा नायिका अपने क्रोध के कारण अपराधी प्रियतम को कठोरता पूर्वक डाँटकर पीटती है।।१०४३.॥
यथा ममैव
कान्ते सागसि काचिदन्तिकगते निर्भत्स्य रोषाक्षरै—भङ्गीकुटिलैरपाङ्गवलनैरालोकमाना मुहुः । बद्ध्वा मेखलया सपत्नरमणीपादाब्जलाक्षाङ्कितं
लीलानीलसरोरुहेण निटिलं हन्ति स्म रोषाकुला ।।53 ।। जैसे शिङ्गभूपाल का
दूसरी नायिका के साथ सम्भोग करके अपराध करने वाले प्रियतम के समीप में आने पर कठोर शब्दों से झिड़ककर, त्यौरी चढ़ाने से टेढ़ी अतएव घुमी हुई आँखों से बार-बार देखती हुई, रोष से व्याकुल (नायिका) ने सपत्नी के (साथ रमण करने के कारण) चरण-कमलों की महावर के स्पर्श से लगे हुए चिह्न वाले (प्रियतम) को मेखला से बाँध कर लीलापूर्वक नीले कमल