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प्रथमो विलासः
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प्रधानमप्रधानं वा नाटकादावियं भवेत् ।
मालतीमाधवे लक्ष्ये मालतीमदयन्तिके ।।१०९।।
नाटक इत्यादि में यह (परकीया नायिका कन्या) प्रधान अथवा अप्रधान रूप से दिखलायी पड़ती है। जैसे- मालतीमाधव में मालती तथा मदयन्तिका (कन्या परकीया नायिकाएँ) हैं।।१०९॥
अथ परोढा
परोढा परेणोढाप्यन्यसम्भोगलालसा ।
लक्ष्या क्षुद्रप्रबन्ये सा सप्तशत्यादिके बुधैः ।।११०।।
(आ) परोढा- दूसरे पुरुष से विवाहित होने पर भी (उस विवाहित पति से) अन्य पुरुष के साथ सम्भोग की प्रबल इच्छा (उत्सुकता) वाली (नायिका) परोढा (नायिका) कहलाती है। यह नायिका सप्तशती इत्यादि क्षुद्रप्रबन्ध में दिखलायी देती है।।११०॥
यथा
भत निश्वसितेऽप्यसूयति मनोजिघ्रः सपत्नीजनः श्वश्रूरिङ्गितदैवतं नयनयोरीहालीहो यातरः । तरादयमञ्जलिः किममुना दृग्भङ्गिपातेन ते
वैदग्धीरचनाप्रपञ्चरसिक! व्यर्थोऽयमत्र श्रमः ।।57।। जैसे
पति साँस लेने पर भी शङ्का करता है। सपत्नियाँ मन की बात जानने की कोशिश करती हैं, सास किये गये सङ्केत की देवता (जानने वाली) है, भौरे आँखों के सेवक हैं, इसलिए हे कुशल-रचना को प्रदर्शित करने वाले रसिक! दूर से ही मैं ये हाथ जोड़ रही हूँ, तुम्हारे इस कटाक्षपूर्वक देखने से क्या लाभ है, यहाँ तुम्हारा परिश्रम व्यर्थ है।।57।।
अथ सामान्या
साधारणस्त्री गणिका कलाप्रागल्प्यघाययुक् ।।
(३) सामान्या नायिका- कला, कुशलता (चतुराई) तथा धूर्तता से युक्त गणिका सामान्या नायिका (सामान्यस्त्री) कहलाती है।१११पू.॥
यथा (शृङ्गारतिलके १.१२७)
गाढ़ालिङ्गनपीडितस्तनतट स्विद्यत्कपोलस्थलं. सन्दष्टाधरमुक्तसीत्कृतमतिभ्राम्यद्धू नृत्यत्करम् । चाटुप्रायवचो विचित्रभणितैर्यात रुतैश्चाङ्कितं. वेश्यानां धृतिधाम पुष्पधनुषः प्राप्नोति धन्यो रतम् ।।58 ।।