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प्रथमो विलासः
अथ नायिका निरूप्यन्ते
नेतृसाधारणगुणैरुपेता
नायिका
स्वकीया परकीया च सामान्या चेति सा त्रिधाः ।
मता ।। ९४ ।
नायिका के भेद - ( नायक के बाद) अब नायिका का निरूपण किया जा रहा नायक के सामान्य गुणों से युक्त नायिका होती है। वह नायिका तीन प्रकार की होती है - १. स्वकीया, २. परकीया तथा ३. सामान्या । । ९४उ. - ९५पू.।।
तत्र स्वकीया
सम्पत्काले विपत्काले या न मुञ्चति वल्लभम् ।। ९५ ।। शीलार्जवगुणोपेता सा स्वीया कथिता बुधैः ।
[ ३१ ]
१. स्वकीया - शील और सरलता - इन गुणों से युक्त जो (नायिका) सम्पत्ति और विपत्ति के समय प्रियतम (नायक) को नहीं छोड़ती, वह (नायिका) आचार्यों द्वारा स्वकीया कही गयी है।। ९५उ.-९६पू.।।
यथा (बालरामायणे ६.१९) -
किं
तादेण णरिन्दसेहरसिहालीढग्गपादेण मे किं वा मे ससुरेण वासवमहासिंहासणद्धासिणा । ते देसा गिरिणो अ दे वणमही सा च्चेअ मे वल्लहा कोसल्लातणअस्स जत्थ चलणे वन्दामि णन्दामि अ 1137 ।। (किं तातेन नरेन्द्रशेखरशिखालीढाग्रपादेन मे किं वा मे श्वसुरेण वासवमहासिंहासनाध्यासिना । ते देशा गिरयश्च ते वनमही सा चैव मे वल्लभा कौशल्यातनयस्य यत्र चरणौ वन्दे च नन्दामि च ॥) जैसे (बालरामायण ६. १९ में ) -
राजाओं के शिरों से जिनके पैर चूमें जाते हैं उन पिताजी से मेरा क्या ? और इन्द्र सभा
के सिंहासन के अर्धभाग में बैठने वाले श्वसुर से क्या ? वे ही पर्वत मेरे देश हैं और वनभूमि ही मेरी प्रिय है जहाँ कौशल्या के पुत्र राम के चरणों की वन्दना करूँ और प्रसन्न होऊँ । । 37 ।। सा च स्वीया त्रिघा मुग्धा मध्या प्रौढेति कथ्यते । । ९६ ।। तत्र मुग्धा
मुग्धा नववयःकामा रतौ वामा मृदुः क्रुधि । यतते रतचेष्टायां गूढं लज्जामनोहरम् ।। ९७ ।। कृतापराधे दयिते वीक्षते रुदती सती ।