________________
[३०]
रसार्णवसुधाकरः ..
अथ शृङ्गारनेतृणां साहाय्यकरणोचिताः ।।८९।।
निरूप्यन्ते पीठमर्दविटचेटविदूषकाः ।
शृङ्गार नायक के सहायक- (नायक का निरूपण करने के बाद) अब शृङ्गार (रस) वाले नायकों की सहायता करने वाले पीठमर्द, विट, चेट और विदूषक का निरूपण किया जा रहा है।।८९उ.-९०पू.॥ ..
तत्र पीठमर्दः
नायकानुचरो भक्तः किञ्चिदूनस्तु तद्गुणैः ।।१०।।
पीठमर्द इति ख्यातः कुपितस्त्रीप्रसादकः ।
पीठमर्द- (प्रधान) नायक का अनुचर तथा भक्त, उस (प्रधान नायक) के गुणों से कुछ न्यून गुणों वाला और कुपित स्त्री को प्रसन्न करने वाला (नायक का सहायक) पीठमर्द कहलाता है।।९०उ.-९१पू.।।
__ कामतन्त्रकलावेदी विट इत्यभिधीयते ।।११।।
सन्धानकुशलश्चेटः कलहंसादिको मतः ।
विट और चेट- काम-विषयक कलाओं को जानने वाला (नायक का सहायक) विट कहलाता है। (मानयुक्त नायिका से नायक को) मिलाने में निपुण (नायक का सहायक) चेट कहलाता है। जैसे कलहंस इत्यादि।।९१उ.-९२पू.।।
विकृताङ्गवचोवेषैर्हास्यकारी विदूषकः ।।९२।।
विदूषक- अङ्ग, वाणी तथा वेष के विकार से हास्य करने वाला (नायक का सहायक) विदूषक कहलाता है।।९२उ.।।
अथ सहायगुणा:
देशकालज्ञता भाषामाधुर्यं च विदग्धता । प्रोत्साहने कुशलता यथोक्तकथनं तथा ।। ९३।।
निगूढमन्त्रणेत्याद्याः सहायानां गुणा मताः ।।
नायक के सहायकों के गुण- देश और काल को जानना, वाणी में मधुरता कुशाग्र बुद्धिमत्ता, प्रोत्साहन में कुशलता तथा उचित कथन और निगूढ़ मन्त्रणा इत्यादि (नायक के) सहायकों के गुण कहे गये हैं।।९३-९४पू.।।
कप्रकरणम् ।। ।। इस प्रकार नायक प्रकरण समाप्त ।।
+++