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रसार्णवसुधाकरः
जैसे (कुमारसम्भव १.१८ में)
सुमेर पर्वत के मित्र इस मर्यादा जानने वाले हिमालय ने पितरों के मनःसङ्कल्प से उत्पन्न, मुनियों की भी माननीया एवं अपने अनुरूप मेना नामक कन्या के साथ अपने कुल की स्थिति (वंश-परम्परा के लिए) शास्त्र-विधि से विवाह किया।।२७।।
चतुर्धा सोऽपि कथितो वृत्त्या काव्यविचक्षणैः ।
अनुकूलः शठो धृष्टो दक्षिणश्चेति भेदतः ।।८।।
पति के भेद- वह (पति) वृत्ति (अवस्था,दशा) के अनुसार अनुकूल, शठ, धृष्ट और दक्षिण भेद से चार प्रकार का कहा गया है।८१।
तत्र
' अनुकूलस्त्वेकजानिः (अ) अनुकूल (नायक)- केवल एक नायिका वाला नायक अनुकूल कहलाता है। तत्र धीरोदात्तानुकूलो यथा (रघुवंशे १४/८७)
सीतां हित्वा दशमुखरिपुर्नोपमेये यदन्यां तस्या एव प्रतिकृतिसखो यत्क्रतुना जहार । वृत्तान्तेन श्रवणविषयव्यापिना तेन भर्तुः
सा दुर्वारं कथमपि परित्यागदुःखं विषेहे ।।28।। धीरोदात्तानुकूल जैसे (रघुवंश १४.८७ में). रावण के शत्रु राम ने सीता को त्यागकर किसी दूसरी स्त्री से विवाह नहीं किया, किन्तु अश्वमेध यज्ञ करते समय उन्होंने सीता की स्वर्णमयी मूर्ति को उनका प्रतिनिधि बनाकर अर्धांगिनी के रूप में बायें बैठाया था, जब सीता जी ने अपने पति की ये बातें सुनी, तब उनके मन में छोड़े जाने का जो असह्य दुःख था वह किसी प्रकार सहन हो सका।।28।।
धीरललितानुकूलो यथा (रघुवंशे ८.३२)
स कदाचिदवेक्षितप्रजः सह देव्या विजहार सुप्रजाः । . नगरोपवने शचीसखो मरुतां पालयितेव नन्दने ।।29।। धीरललितानुकूल (नायक) जैसे (रघुवंश ८.३२ में)
एक दिन उत्तम-सन्तान बाले प्रजापालक राजा अज अपनी रानी इन्दुम्ती के साथ नगर के उपवन में उसी प्रकार विहार कर रहे थे जिस प्रकार देवताओं के पालक इन्द्र नन्दन वन में इन्द्राणी के साथ विहार करते हैं।।29 ।।
धीरशान्तानुकूलो यथा (मालतीमाधवे ९.९)
प्रियमाधवे! किमसि मय्यवत्सला