________________
प्रथमो विलासः
[१५]
धार्मिकता- धर्म में अनुरक्त मन वाला होना धार्मिकता कहलाता है।।६६ उ.।। जैसे (रघुवंश १.२५)
लोकमर्यादा- पालन के लिए दण्ड देने योग्य अपराधियों को ही दण्ड देने से तथा सन्तानोत्पत्ति के लिए ही विवाह करने से बुद्धिमान् महाराज दिलीप के अर्थ और काम भी धर्मरूप ही थे।।6।।
अथ कुलीनत्वम्
कुले महति सम्भूतिः कुलीनत्वमुदाहृतम् । यथा- (विक्रमोर्वशीये ४.१९)
सूर्याचन्द्रमसौ यस्य मातामहपितामहौ ।
स्वयं वृत्तपतिभ्यामुर्वश्या च भुवा च यः ।।7।। कुलीनता- महान् कुल (वंश) में जन्म होना कुलीनता कहलाता है।६७ पू.।। जैसे (विक्रमोर्वशीय-४.१९ में)
सूर्य और चन्द्र क्रमशः जिसके मातृकुल के ज्येष्ठ मातामह (नाना) और पितृकुल के पितामह (दादा) हैं, स्वयं जो दिव्यनारी उर्वशी तथा पृथ्वी दोनों का स्वयंवर पद्धति से चुना हुआ पति हैं ऐसे मुझ सत्कुलोत्पन्न पराक्रमी राजा पुरूरवा को तू नहीं जानता।।7।।
अथ वाग्मिता___वाग्मिता तु बुधैरुक्ता समयोचितभाषिता।।६७।। यथा- (विक्रमोर्वशीये १.१७)
ननु वज्रिण एव वीर्यमेतद् विजयन्ते द्विषतो यदस्य पक्ष्याः । वसुधाधरकन्दराद् विसपी .
प्रतिशब्दोऽपि हरेभिनत्ति नागान् ।।8।। वाक्पटुता (वाग्मिता)- समय के अनुसार उचित बोलना वाकाटुता कहलाता है।।६७।। जैसे (विक्रमोर्वशीय-१.१७)
यह तो वज्रधारण करने वाले (इन्द्र) का ही पराक्रम है कि-उनके पक्ष वाले (हम जैसे) लोग (उनके) शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर लेते हैं। (क्योंकि, देखे) पहाड़ की गुफाओं में गूंजने वाले सिंह के गर्जन की प्रतिध्वनि भी हाथियों को नष्ट कर देती हैं (उनको भयभीत करके झुण्ड को तितर-वितर कर देती है वस्तुतः जैसे इसमें सिंह का गर्जन ही प्रधान है, उसी प्रकार यहाँ पर भी इन्द्र का पराक्रम ही महत्व रखता है।)।।8।।
अथ कृतज्ञत्वम्
कृतानामुपकाराणामभिज्ञं कृतज्ञता ।